विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर से प्रत्येक वर्ष सावन और भादौ माह के सोमवार पर बाबा महाकाल अलग-अलग स्वरूपों में नगर भ्रमण पर निकलते हैं। दो सितंबर को बाबा महाकाल की वर्ष की आखरी शाही सवारी है। हिंदुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी गाते हैं शाही सवारी में भजन।
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विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल मंदिर से हर साल श्रावण और भादौ महीने के सोमवार को बाबा महाकाल अलग-अलग रूपों में पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं। आज, 2 सितंबर, को इस वर्ष की आखिरी शाही सवारी है। सवारी के इतिहास की बात करें तो इससे जुड़ी कई कहानियाँ हैं। एक समय था जब पत्रों के माध्यम से आम जन को सवारी में आमंत्रित किया जाता था। लेकिन आज, देश के हर कोने से भक्त बिना बुलाए ही बाबा की झलक पाने के लिए उमड़ पड़ते हैं और आस्था का विशाल जनसैलाब देखने को मिलता है।
शाही सवारी में शामिल होने वाले विभिन्न राज्यों और शहरों के बैंड में धार्मिक सौहार्द का खास संदेश देखने को मिलता है। इन बैंड में हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम कलाकार भी शामिल होते हैं, जो बाबा के भजन गाते हैं और भजनों की धुनें बैंड पर बजाते हैं। इसके अलावा, डमरू मंडली, भजन मंडलियां, मलखंब की प्रस्तुति देने वाले बच्चे और अन्य कई लोग भी सवारी में हिस्सा लेते हैं। भक्त नाचते-गाते और झूमते हैं, और इस बार का यह दृश्य खास है क्योंकि यह दो साल के कोरोना संकट के बाद पहली बार सामने आ रहा है।
मुस्लिम भी गाते हैं भजन
बैंड के मालिक विजय सिंह ने बताया कि उनके बैंड में शामिल हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समाजों के लोग चार पीढ़ियों से नि:शुल्क सेवा दे रहे हैं। उज्जैन के अलावा, देशभर के विभिन्न राज्यों से बैंड के सदस्य बाबा महाकाल की शाही सवारी में निस्वार्थ भाव से भाग लेने आते हैं। वे इस दिन की तैयारी विगत सप्ताह से ही कर रहे होते हैं। शहर के ही पांच बैंड हैं, और बाहर के भी अलग-अलग बैंड आते हैं। सभी बैंड धार्मिक भजनों की प्रस्तुति देते हैं। शाही सवारी के लिए न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम भी भजन गाते हैं और इस दौरान पूरा माहौल शिवमय हो जाता है। एक बैंड का खर्चा करीब एक से डेढ़ लाख रुपये आता है, जिसमें मंदिर समिति द्वारा 5000 से 11000 रुपये तक की राशि दी जाती है। खाने-पीने की व्यवस्था भी वे स्वयं करते हैं। बैंड बजाने वालों की ड्रेस का खर्च प्रति व्यक्ति तीन से साढ़े तीन हजार रुपये आता है। एक बैंड में करीब 40 लोग होते हैं, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही बिना किसी भेदभाव के शामिल होते हैं।
धार्मिक सौहार्द्र का प्रतीक शाही सवारी
शाही सवारी धार्मिक सौहार्द्र का प्रतीक है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग एक साथ भजन गाते हैं और बाबा महाकाल की आराधना करते हैं।
हिंदुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी गाते हैं शाही सवारी में भजन।
हिंदुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी गाते हैं शाही सवारी में भजन।
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