mp-news:-बुंदेलखंड-में-हजारों-साल-से-चल-रही-कृष्ण-पूजन-परंपरा,-तस्वीरों-में-देखें-जन्म-से-कंस-वध-की-लीलाएं
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: अरविंद कुमार Updated Sun, 25 Aug 2024 02: 19 PM IST ऐरण सागर जिले की बीना तहसील का एक ऐसा पुरातात्विक स्थल है, जो हजारों साल से चली आ रही हिंदू धर्म की परंपराओं, कला एवं संस्कृति के संरक्षक के रूप में आज भी विद्यमान है। Trending Videos खास बात ये है कि यहां पर गुप्तकाल में भगवान विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियां देखने को मिल जाएंगी। एरण में गुप्तकालीन कला के प्रतीक के तौर पर कृष्ण लीला का सुंदर और मनोहरी वर्णन किया गया है। लाल बलुआ पत्थर पर कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक की प्रतिमाएं बनाई गई हैं।  जानकार बताते हैं कि भारत में किसी भी पुरातात्विक महत्व के स्थान पर कृष्ण लीला के प्रमाण नहीं मिले हैं। पुरातत्वविदों का कहना है कि यह शिलापट्ट 1600 से 1800 साल पूर्व के हैं। ऐरण अकेला ऐसा स्थान है, जहां पर गुप्तकाल के कृष्णलीला के प्रमाण हैं। डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे बताते हैं कि ऐरण बुंदेलखंड का सबसे प्राचीनतम स्थल साबित हुआ है। ऐरण में ब्रिटिशकाल से लेकर अब तक पुरातत्व विभाग ने कई बार उत्खनन और सर्वेक्षण किए गए हैं।  इसका इतिहास नवपाषाण युग से प्रारंभ होता है। सबसे ज्यादा महत्व ऐरण को गुप्तकाल में मिला है। गुप्तकाल की ये क्षेत्रीय राजधानी थी और कहा गया है कि चंद्रगुप्त के बेटे रामगुप्त का शासन यहीं था। उसके बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने यहां का शासन संभाला।

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सागर Published by: अरविंद कुमार Updated Sun, 25 Aug 2024 02: 19 PM IST

ऐरण सागर जिले की बीना तहसील का एक ऐसा पुरातात्विक स्थल है, जो हजारों साल से चली आ रही हिंदू धर्म की परंपराओं, कला एवं संस्कृति के संरक्षक के रूप में आज भी विद्यमान है।

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खास बात ये है कि यहां पर गुप्तकाल में भगवान विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियां देखने को मिल जाएंगी। एरण में गुप्तकालीन कला के प्रतीक के तौर पर कृष्ण लीला का सुंदर और मनोहरी वर्णन किया गया है। लाल बलुआ पत्थर पर कृष्ण जन्म से लेकर कंस वध तक की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। 

जानकार बताते हैं कि भारत में किसी भी पुरातात्विक महत्व के स्थान पर कृष्ण लीला के प्रमाण नहीं मिले हैं। पुरातत्वविदों का कहना है कि यह शिलापट्ट 1600 से 1800 साल पूर्व के हैं। ऐरण अकेला ऐसा स्थान है, जहां पर गुप्तकाल के कृष्णलीला के प्रमाण हैं।

डॉ. हरी सिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नागेश दुबे बताते हैं कि ऐरण बुंदेलखंड का सबसे प्राचीनतम स्थल साबित हुआ है। ऐरण में ब्रिटिशकाल से लेकर अब तक पुरातत्व विभाग ने कई बार उत्खनन और सर्वेक्षण किए गए हैं। 

इसका इतिहास नवपाषाण युग से प्रारंभ होता है। सबसे ज्यादा महत्व ऐरण को गुप्तकाल में मिला है। गुप्तकाल की ये क्षेत्रीय राजधानी थी और कहा गया है कि चंद्रगुप्त के बेटे रामगुप्त का शासन यहीं था। उसके बाद चंद्रगुप्त द्वितीय ने यहां का शासन संभाला।

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