jabalpur:-'dgp-देखें-डीएनए-जांच-में-होना-चाहिए-प्रमाणित-किट-का-इस्तेमाल',-गैंग-रेप-मामले-में-हाईकोर्ट-का-आदेश
विस्तार Follow Us सीजेएम कोर्ट द्वारा गैंग रेप के मामले में आरोप तय किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि डीएनए रिपोर्ट में दुष्कर्म की संभावना से इंकार नहीं किया है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस महानिदेशक यह देखें कि डीएनए जांच सही तरीके से होने के साथ उसके लिए प्रमाणित किट का उपयोग किया जा रहा है। झांसी निवासी चंद्रकांत यादव तथा जगदीश प्रसाद तिवारी की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि उनके खिलाफ निवाड़ी थाने में एक महिला ने गैंगरेप करने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। पुलिस ने जांच के बाद सीजेएम टीकमगढ़ के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी। न्यायालय ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद न्यायालय ने उनके खिलाफ धारा 376 डी सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किए जाने के आदेश जारी कर दिया है। जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि घटना दिनांक के समय वह दोनों अलग-अलग स्थान पर थे। इसके अलावा डीएनए रिपोर्ट में भी दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है। एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने अलग-अलग स्थानों में होने के संबंध में वीडियो पेश किए हैं। वीडियो के प्रमाणित होने के कोई दस्तावेज पेश नहीं किए हैं। इसके अलावा पेश की गई डीव्हीआर रिपोर्ट में तारीख व स्थान मैन्युअल लिखे गए हैं। पेश किए गए वीडियो व घटना के समय में आधे घंटे का अंतर है। घटना स्थल से आरोपियों को उपस्थित होने की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि घटना के बाद आरोपी दूसरे कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे। डीएनए रिपोर्ट के संबंध में एकलपीठ ने उक्त निर्देश जारी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि आरोपी न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते हैं तो पुलिस अधीक्षक रेवाड़ी का कर्तव्य है कि न्यायालय द्वारा जारी वारंट की तामील करवाएं। घटना जून 2019 की है, विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संबंधित न्यायालय को निर्देशित किया जाता है कि एक साल में प्रकरण का निराकरण करें और पेशी की तिथि एक सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिए।

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सीजेएम कोर्ट द्वारा गैंग रेप के मामले में आरोप तय किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलूवालिया की एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि डीएनए रिपोर्ट में दुष्कर्म की संभावना से इंकार नहीं किया है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस महानिदेशक यह देखें कि डीएनए जांच सही तरीके से होने के साथ उसके लिए प्रमाणित किट का उपयोग किया जा रहा है।

झांसी निवासी चंद्रकांत यादव तथा जगदीश प्रसाद तिवारी की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि उनके खिलाफ निवाड़ी थाने में एक महिला ने गैंगरेप करने की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। पुलिस ने जांच के बाद सीजेएम टीकमगढ़ के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी। न्यायालय ने क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। जिसे चुनौती देते हुए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद न्यायालय ने उनके खिलाफ धारा 376 डी सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किए जाने के आदेश जारी कर दिया है। जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गई है।

याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि घटना दिनांक के समय वह दोनों अलग-अलग स्थान पर थे। इसके अलावा डीएनए रिपोर्ट में भी दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई है। एकलपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने अलग-अलग स्थानों में होने के संबंध में वीडियो पेश किए हैं। वीडियो के प्रमाणित होने के कोई दस्तावेज पेश नहीं किए हैं। इसके अलावा पेश की गई डीव्हीआर रिपोर्ट में तारीख व स्थान मैन्युअल लिखे गए हैं। पेश किए गए वीडियो व घटना के समय में आधे घंटे का अंतर है। घटना स्थल से आरोपियों को उपस्थित होने की दूरी लगभग 30 किलोमीटर है। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि घटना के बाद आरोपी दूसरे कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे।

डीएनए रिपोर्ट के संबंध में एकलपीठ ने उक्त निर्देश जारी करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि आरोपी न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते हैं तो पुलिस अधीक्षक रेवाड़ी का कर्तव्य है कि न्यायालय द्वारा जारी वारंट की तामील करवाएं। घटना जून 2019 की है, विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संबंधित न्यायालय को निर्देशित किया जाता है कि एक साल में प्रकरण का निराकरण करें और पेशी की तिथि एक सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिए।

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