मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। उन्होंने इसमें कहा है कि संदिग्ध मृत्युपूर्व बयान सजा का आधार नहीं हो सकते। कोर्ट ने निचली कोर्ट की आजीवन कारावास की सजा को भी रद्द कर दिया।
पत्नी को जिंदा जलाकर हत्या करने के आरोप में दंडित पति व उसके दोस्त ने आजीवन कारावास की सजा को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस एके सिंह की युगलपीठ ने पाया कि मृत्यु पूर्व बयान में मृतिक के अंगूठा का निशान लगा हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के दौरान मृतिका के अंगूठे म स्याही नहीं थी। बयान और मृत्यु के बीच सिर्फ 9 घंटों का अंदर था। युगलपीठ ने मृत्यु पूर्व बयान को संदिग्ध मानते हुए सजा को निरस्त कर दिया।
अपीलकर्ता सागर निवासी पप्पू उर्फ माखन साहू तथा उसके दोस्त बल्लू उर्फ बलराम की तरफ से मृत्यु पूर्व बयान के आधार पर आजीवन कारावास की सजा से दंडित किए जाने को चुनौती दी गई थी। उनकी तरफ से दायर अपील में कहा गया था कि अभियोजन के अनुसार पप्पू उर्फ माखन ने शराब पीने के लिए अपनी पत्नी से रुपये मांगे थे। पत्नी द्वारा इंकार करने पर उसने अपने दोस्त बल्लू से साथ मिलकर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी। महिला को 90 प्रतिशत जलने के कारण अस्पताल में भर्ती करवाया गया था।
अपील में कहा गया था कि मृत्यु पूर्व बयान में महिला के अंगूठे के निशान हैं। महिला के हाथ पूरे तरह जले हुए थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार महिला के हाथ में स्याही के निशान नहीं थे। इसके अलावा बेटी के धारा 164 के बयान घटना के एक माह बाद दर्ज किए गए। इस दौरान बेटी उसके ससुराल पक्ष के पास थी। युगलपीठ ने मृत्यु पूर्व बयान को संदिग्ध मानते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त करने के आदेश जारी किए हैं।
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