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विकलांगता की वजह से बिस्तर पर होने के कारण न्यायालय द्वारा पत्नी को भरण-पोषण की राशि के संबंध में पारित आदेश को चुनौती देते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए पाया कि याचिकाकर्ता को डॉक्टर ने 40 प्रतिशत अस्थाई विकलांगता का सर्टिफिकेट जारी किया है, जो सितम्बर 2026 तक मान्य है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता का यह तर्क स्वीकार योग्य नहीं है कि वह विकलांगता के कारण बिस्तर पर है। इसके बाद याचिका को खारिज कर दिया गया।
पन्ना निवासी महेन्द्र सिंह की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया था कि उसकी पत्नी कविता ने साल 2019 में भरण-पोषण की राशि के लिए कुटुम्ब न्यायालय में आवेदन दायर किया था। कुटुम्ब न्यायालय ने जनवरी 2022 को भरण-पोषण की राशि एक हजार रुपये प्रतिमाह निर्धारित की थी। जिसके खिलाफ उसने और पत्नी ने अपील दायर की थी। न्यायालय ने उसकी अपील को खारिज कर दिया था और पत्नी की अपील को स्वीकार करते हुए भारण-पोषण की राशि पांच हजार रुपये प्रतिमाह कर दी थी।
याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया था कि जुलाई 2020 में उसे करंट लग गया था। जिसके कारण वह विकलांग हो गया और बिस्तर पर है। वह बेरोजगार है और भरण-पोषण की राशि देने में सक्षम नहीं है। एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि भारण-पोषण के आवेदन की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने विकलांगता का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं किया था। अपील की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने विकलांगता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किया था। न्यायालय ने पाया था कि विकलांगता प्रमाण-पत्र के अनुसार याचिकाकर्ता 40 प्रतिशत पैरों से विकलांग है। डॉक्टरों द्वारा अस्थाई विकलांगता प्रमाण-पत्र सिर्फ पांच साल के लिए जारी किया गया है,जो सिम्तबर 2026 तक वैध है।
एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता यह सबित करने में विफल रहा है कि वह बिस्तर पर पड़ा है। मेडिकल रिपोर्ट के अभाव में वह अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने के अपने दायित्व से बच नहीं सकता है। दोनों निचली अदालतों ने यह मानकर कोई गलती नहीं की है कि आवेदक कमाने के लिए पर्याप्त सक्षम है। भरण-पोषण राशि के संबंध में दैनिक जरूरतों की वस्तुओं की कीमत, मूल्य सूचकांक आदि को देखते हुए पांच हजार रुपये की राशि को अधिक नहीं मानी जा सकती।
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