child-marriages:-इंडिंग-चाइल्ड-मैरेज’-नाम-से-जारी-रिपोर्ट
Child Marriages: पर रोक के बावजूद देश में यह एक बड़ी समस्या बनी हुई है. हालांकि समय के साथ बाल-विवाह में कमी आयी है, लेकिन देश के कई हिस्सों खासकर गरीब तबकों में यह प्रथा अभी भी जारी है. जनगणना 2011 के अनुसार देश में रोजाना 18 साल के कम उम्र की 4442 लड़कियों की शादी हो रही थी, लेकिन इसके खिलाफ प्रतिदिन सिर्फ 3 मामले ही दर्ज हो रहे थे. इससे बाल-विवाह की गंभीरता को समझा जा सकता है. इस पर रोक लगाने के लिए असम सरकार की ओर से बाल-विवाह पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून बनाया गया है. इन कानूनों का असर जमीन पर दिख रहा है. हाल के वर्षों में असम में बाल-विवाह के मामले में 81 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है. यह दावा इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के अध्ययन दल की रिपोर्ट ‘टूवार्ड्स जस्टिस: इंडिंग चाइल्ड मैरेज’ नाम से जारी रिपोर्ट में किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में 2021-22 से 2023-24 के बीच 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है जिनमें 8 लाख बच्चे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सख्त कानून बनने के बाद राज्य के 30 फीसदी गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है जबकि 40 फीसदी गांवों में व्यापक स्तर पर कमी आयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश में बाल-विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ. यानी लंबित मामलों की संख्या 92 फीसदी है. वर्ष 15-19 आयु वर्ग में मां बनने वाली महिलाओं की संख्या नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार इस आयु वर्ग में मां बन चुकी या गर्भवती महिलाओं की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर 6.8 फीसदी है. लेकिन त्रिपुरा में यह संख्या 21.9 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 16.4 फीसदी, असम में 11.7 फीसदी, बिहार में 11 फीसदी, झारखंड में 9.8 फीसदी है. जबकि दिल्ली में सबसे कम 3.3 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 3.4 फीसदी, राजस्थान में 3.7 फीसदी है. बुधवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो और बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के संस्थापक और बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की मौजूदगी में बाल विवाह पीड़ितों द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट इस बात की ओर साफ संकेत करती है कि कानूनी कार्रवाई बाल विवाह के खात्मे के लिए सबसे प्रभावी औजार है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि भारत हर मायने में वैश्विक नेता बनने की राह पर है. यह रिपोर्ट बाल विवाह के मुद्दे पर हमारे कामकाज और समझ को मजबूत करने में मदद करेगी. असम के एफआईआर दर्ज कर बाल विवाह रोकने के मॉडल का देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों को भी अनुसरण करना चाहिए. धार्मिक आधार पर बच्चों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. बाल विवाह निषेध कानून (पीसीएमए) और पॉक्सो धर्मनिरपेक्ष कानून हैं और वे किसी भी धर्म या समुदाय के रीति रिवाजों का नियमन करने वाले कानूनों से ऊपर हैं. 

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Child Marriages: पर रोक के बावजूद देश में यह एक बड़ी समस्या बनी हुई है. हालांकि समय के साथ बाल-विवाह में कमी आयी है, लेकिन देश के कई हिस्सों खासकर गरीब तबकों में यह प्रथा अभी भी जारी है. जनगणना 2011 के अनुसार देश में रोजाना 18 साल के कम उम्र की 4442 लड़कियों की शादी हो रही थी, लेकिन इसके खिलाफ प्रतिदिन सिर्फ 3 मामले ही दर्ज हो रहे थे. इससे बाल-विवाह की गंभीरता को समझा जा सकता है. इस पर रोक लगाने के लिए असम सरकार की ओर से बाल-विवाह पर लगाम लगाने के लिए सख्त कानून बनाया गया है. इन कानूनों का असर जमीन पर दिख रहा है. हाल के वर्षों में असम में बाल-विवाह के मामले में 81 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है. यह दावा इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के अध्ययन दल की रिपोर्ट ‘टूवार्ड्स जस्टिस: इंडिंग चाइल्ड मैरेज’ नाम से जारी रिपोर्ट में किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि असम में 2021-22 से 2023-24 के बीच 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 फीसदी की कमी दर्ज की गयी है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए जहां कुल आबादी 21 लाख है जिनमें 8 लाख बच्चे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि सख्त कानून बनने के बाद राज्य के 30 फीसदी गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है जबकि 40 फीसदी गांवों में व्यापक स्तर पर कमी आयी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश में बाल-विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा हुआ. यानी लंबित मामलों की संख्या 92 फीसदी है.

वर्ष 15-19 आयु वर्ग में मां बनने वाली महिलाओं की संख्या नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार इस आयु वर्ग में मां बन चुकी या गर्भवती महिलाओं की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर 6.8 फीसदी है. लेकिन त्रिपुरा में यह संख्या 21.9 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 16.4 फीसदी, असम में 11.7 फीसदी, बिहार में 11 फीसदी, झारखंड में 9.8 फीसदी है. जबकि दिल्ली में सबसे कम 3.3 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 3.4 फीसदी, राजस्थान में 3.7 फीसदी है. बुधवार को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो और बाल विवाह मुक्त भारत (सीएमएफआई) के संस्थापक और बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की मौजूदगी में बाल विवाह पीड़ितों द्वारा जारी की गई यह रिपोर्ट इस बात की ओर साफ संकेत करती है कि कानूनी कार्रवाई बाल विवाह के खात्मे के लिए सबसे प्रभावी औजार है. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि भारत हर मायने में वैश्विक नेता बनने की राह पर है. यह रिपोर्ट बाल विवाह के मुद्दे पर हमारे कामकाज और समझ को मजबूत करने में मदद करेगी. असम के एफआईआर दर्ज कर बाल विवाह रोकने के मॉडल का देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य देशों को भी अनुसरण करना चाहिए. धार्मिक आधार पर बच्चों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. बाल विवाह निषेध कानून (पीसीएमए) और पॉक्सो धर्मनिरपेक्ष कानून हैं और वे किसी भी धर्म या समुदाय के रीति रिवाजों का नियमन करने वाले कानूनों से ऊपर हैं.