न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: अरविंद कुमार Updated Fri, 28 Jun 2024 08: 45 PM IST
भोपाल एम्स के एक शोध में सामने आया है कि कैंसर से पीड़ित 70 प्रतिशत बच्चों में चिंता के लक्षण पाए गए, जिन्हें मनोवैज्ञानिक इलाज से उन्हें ठीक किया गया। इस शोध की तारीफ जापान में भी की गई। एम्स शोध की जापान में तारीफ – फोटो : अमर उजाला
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राजधानी स्थित भोपाल एम्स के चिकित्सकों ने एक शोध किया है, जिसमें पाया गया है कि कैंसर से पीड़ित 70 फ़ीसदी बच्चों में चिंता के भाव पाए गए हैं और इन बच्चों का मनोवैज्ञानिक तरीके से इलाज कर ठीक किया गया है। एम्स के चिकित्सकों ने इस शोध को इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी (एसआईओपी एशिया) 2024 सम्मेलन में प्रस्तुत किया, जिसमें उन्हें खूब तारीफ मिली। यह सम्मेलन जापान के योकोहामा में आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन में 43 देशों के 700 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। एम्स भोपाल के बाल रोग विभाग के पीडियाट्रिक हेमटोलॉजी ऑन्कोलॉजी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. नरेंद्र चौधरी, पीडियाट्रिक हेमेटो-ऑन्कोलॉजी फेलो डॉ मुग्धा टोडकर और सीनियर रेजिडेंट डॉ अनीशा रोजिलन के साथ एसआईओपी एशिया 2024 में शामिल हुए और चार शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिनमें से तीन रक्त कैंसर से संबंधित थे और एक कैंसर से पीड़ित बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर था।
रक्त कैंसर से पीड़ित बच्चे स्टेरॉयड से पूरी तरह नहीं हो सकते ठीक
एम्स भोपाल की डॉ. मुग्धा ने एक बच्चे में रक्त कैंसर का एक दिलचस्प मामला प्रस्तुत किया, जिसमें रक्त कैंसर से पीड़ित बच्चा स्टेरॉयड और पारंपरिक उपचार से लाभ तो हो सकता है। लेकिन ठीक नहीं होता। यह आंशिक उपचार उचित निदान, इलाज और परिणाम को और अधिक कठिन बना देता है। इससे यह संदेश दिया गया कि संदिग्ध रक्त कैंसर वाले बच्चे का पारंपरिक दवाओं से तब तक इलाज न करें, जब तक कि ठीक से निदान न हो और पूरी योजना न बन जाए।
डॉ. अनीशा रोजलिन ने बाल मनोविज्ञान पर कैंसर के निदान के प्रभाव पर एक पेपर प्रस्तुत किया। उन्होंने 50 बच्चों का अध्ययन किया और पाया कि 14 प्रतिशत बच्चों में अवसाद के लक्षण थे और लगभग 70 प्रतिशत बच्चों में चिंता के लक्षण थे। इन मनोवैज्ञानिक लक्षणों को बिना दवाओं के केवल परामर्श से प्रबंधित किया गया। इस अध्ययन का मार्गदर्शन मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. आशीष पाखरे ने भी किया। एम्स भोपाल के शोध पत्रों पर शोध पत्र चर्चा को अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों ने खूब सराहा। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक डॉ. अजय सिंह ने शोधकर्ताओं को बधाई दी और संकायों, रेजिडेंट डॉक्टरों, छात्रों और यहां तक कि नर्सिंग स्टाफ को भी शोध में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया।
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