damoh-news:-250-साल-पुराने-मराठा-कालीन-बावड़ी-में-बने-हैं-महलनुमा-कमरे,-देखरेख-न-होने-से-हो-रही-उपेक्षा
न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, दमोह Published by: दमोह ब्यूरो Updated Fri, 28 Jun 2024 03: 40 PM IST डॉ. पदमाकर पाठक ने बताया कि इस बावड़ी को लेकर प्राचीन परंपरा है। कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन इस स्थान पर दही हांडी प्रतियोगिता होती है। उस दिन सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण को इस बावड़ी में स्नान कराया जाता है। इसके बाद देर रात तक कार्यक्रम चलता था। प्राचीन बावड़ी में भरा पानी - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us दमोह जिले में कई ऐतिहासिक विरासत हैं, जिन्हें सहेजने की जरूरत है। शहर के बीचों-बीच की एक मराठा कालीन विरासत देखने को मिली है। स्टेशन चौराहा के पास मराठा कालीन प्राचीन बावड़ी स्थित है। जो आज दुर्दशा का शिकार है। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं, 60 फीट गहरी इस बावड़ी का निर्माण साल 1770 में मराठा शासकों द्वारा कराया गया था। इस बावड़ी के नीचे महलनुमा आकृति के कमरे बने हैं। बारिश में यह बावड़ी ऊपर तक पानी से लबालब भर जाती है, जिससे इसके नीचे बने कमरे भी पानी में डूब जाते हैं। बावड़ी के बाजू से मराठा शासकों द्वारा बनवाया गया प्राचीन मंदिर भी है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से इस बावड़ी की देखरेख न हाेने से यह उपेक्षित पड़ी है। स्थानीय निवासी वयोवृद्ध डॉ. पदमाकर पाठक ने बताया कि इस बावड़ी को लेकर प्राचीन परंपरा है। कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन इस स्थान पर दही हांडी प्रतियोगिता होती है। उस दिन सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण को इस बावड़ी में स्नान कराया जाता है। इसके बाद देर रात तक कार्यक्रम चलता था। हालांकि, समय के साथ अब यह परंपरा सांकेतिक रूप से निभाई जाती है। बता दें दमोह जिले में मराठा कालीन, कल्चुरी कालीन ऐतिहासिक विरासत हैं, जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है। दमोह जिला भी रानी दमयंती की नगरी के नाम से जाना जाता है। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, दमोह Published by: दमोह ब्यूरो Updated Fri, 28 Jun 2024 03: 40 PM IST

डॉ. पदमाकर पाठक ने बताया कि इस बावड़ी को लेकर प्राचीन परंपरा है। कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन इस स्थान पर दही हांडी प्रतियोगिता होती है। उस दिन सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण को इस बावड़ी में स्नान कराया जाता है। इसके बाद देर रात तक कार्यक्रम चलता था। प्राचीन बावड़ी में भरा पानी – फोटो : अमर उजाला

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दमोह जिले में कई ऐतिहासिक विरासत हैं, जिन्हें सहेजने की जरूरत है। शहर के बीचों-बीच की एक मराठा कालीन विरासत देखने को मिली है। स्टेशन चौराहा के पास मराठा कालीन प्राचीन बावड़ी स्थित है। जो आज दुर्दशा का शिकार है।

स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं, 60 फीट गहरी इस बावड़ी का निर्माण साल 1770 में मराठा शासकों द्वारा कराया गया था। इस बावड़ी के नीचे महलनुमा आकृति के कमरे बने हैं। बारिश में यह बावड़ी ऊपर तक पानी से लबालब भर जाती है, जिससे इसके नीचे बने कमरे भी पानी में डूब जाते हैं। बावड़ी के बाजू से मराठा शासकों द्वारा बनवाया गया प्राचीन मंदिर भी है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से इस बावड़ी की देखरेख न हाेने से यह उपेक्षित पड़ी है।

स्थानीय निवासी वयोवृद्ध डॉ. पदमाकर पाठक ने बताया कि इस बावड़ी को लेकर प्राचीन परंपरा है। कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन इस स्थान पर दही हांडी प्रतियोगिता होती है। उस दिन सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण को इस बावड़ी में स्नान कराया जाता है। इसके बाद देर रात तक कार्यक्रम चलता था। हालांकि, समय के साथ अब यह परंपरा सांकेतिक रूप से निभाई जाती है। बता दें दमोह जिले में मराठा कालीन, कल्चुरी कालीन ऐतिहासिक विरासत हैं, जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है। दमोह जिला भी रानी दमयंती की नगरी के नाम से जाना जाता है।

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