आजाद भारत में भी समाज सुधार के क्षेत्र में काम जारी रखा. अपनी आत्मकथा में जीवन का सार प्रस्तुत करते हुए वह लिखती हैं- ‘शेक्सपियर ने कहा है कि दुनिया एक मंच है. सभी पुरुष व महिलाएं महज कलाकार हैं, लेकिन मेरे लिए यह जीवन एक लंबा विरोध है. मेरा विरोध- रूढ़िवाद, अर्थहीन कर्मकांड, सामाजिक अन्याय, लैंगिक भेदभाव व बेईमानी के खिलाफ है, या हर उस चीज के विरुद्ध है, जो कि अन्यायपूर्ण है़ जब मैं ऐसा कुछ देखती हूं, तो मैं अंधी हो जाती हूं, यहां तक कि यह भी भूल जाती हूं कि मैं किससे लड़ रही हूं.’
Comments