mp-high-court:-कमरे-में-तीन-भाई-थे,-शोर-सुनकर-भी-नहीं-उठे?,-घर-में-घुसकर-छेड़छाड़-के-आरोपों-से-युवक-मुक्त
जबलपुर हाईकोर्ट - फोटो : सोशल मीडिया विस्तार घर में घुसकर युवती से छेड़छाड़ के आरोप में सजा से दंडित एक युवक को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से राहत मिली है। जस्टिस डीके पालीवाल की एकलपीठ ने पाया कि कमरे में युवती के साथ-साथ उसके तीन भाई सो रहे थे। पीडिता ने शोच मचाया और उसके बाद भी भाई नहीं उठे। प्रकरण में उन्हें गवाह तक नहीं बनाया है। एकलपीठ ने युवक को रिहा करने का आदेश जारी करते हुए दंडात्मक आदेश निरस्त कर दिया है। भोपाल जिला न्यायालय ने धारा 456 तथा 354 के तहत आरोपी विनोद अहिरवार को एक साल की सजा तथा 1,500 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अपीलेट न्यायालय ने भी छह दिसम्बर 2022 को पूर्व में पारित आदेश को न्यायोचित करार दिया था। अपीलीय न्यायालय ने आरोपी को न्यायिक अभिरक्षा में भेजने के आदेश जारी किए थे। इसके खिलाफ विनोद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।  घटना को लेकर उठा संदेह याचिका की सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने पाया कि घटना का समय रात 11: 30 बजे का है। दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनकर युवती को लगा कि उसके पिता आए हैं। युवती ने दरवाजा खोला तो आरोपी खड़ा था। उसने जबरजस्ती घर में घुसकर उसके साथ छेड़छाड़ की। शोर मचाने पर पड़ोस में रहने वाला उसका मौसेरा भाई आया। तब आरोपी भाग गया। घटना की रिपोर्ट दूसरे दिन दर्ज करवाई। घटना के 20 मिनट बाद उसके पिता घर लौटे थे। भाईयों और पिता को नहीं बनाया गवाह हाईकोर्ट को संदेह इस बात पर हुआ कि घटना के समय कमरे में पीडिता के तीन भाई सो रहे थे। शोर मचाने पर वे नहीं उठे। प्रकरण में उसके तीनों भाई तथा पिता को गवाह नहीं बनाया गया। मौसरे भाई को गवाह बनाया गया था। पीडिता तथा उसके मौसरे भाई के बयान में विरोधाभास था। न्यायालय व अपीलीय अदालत ने उसे नजरअंदाज कर दिया। पीड़िता तथा याचिककर्ता में प्रेम संबंध थे। वह उसका पड़ोसी था। एकलपीठ ने प्रकरण को संदेह से परे नहीं माना और सजा के आदेश को निरस्त कर दिया।

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जबलपुर हाईकोर्ट – फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार घर में घुसकर युवती से छेड़छाड़ के आरोप में सजा से दंडित एक युवक को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से राहत मिली है। जस्टिस डीके पालीवाल की एकलपीठ ने पाया कि कमरे में युवती के साथ-साथ उसके तीन भाई सो रहे थे। पीडिता ने शोच मचाया और उसके बाद भी भाई नहीं उठे। प्रकरण में उन्हें गवाह तक नहीं बनाया है। एकलपीठ ने युवक को रिहा करने का आदेश जारी करते हुए दंडात्मक आदेश निरस्त कर दिया है।

भोपाल जिला न्यायालय ने धारा 456 तथा 354 के तहत आरोपी विनोद अहिरवार को एक साल की सजा तथा 1,500 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अपीलेट न्यायालय ने भी छह दिसम्बर 2022 को पूर्व में पारित आदेश को न्यायोचित करार दिया था। अपीलीय न्यायालय ने आरोपी को न्यायिक अभिरक्षा में भेजने के आदेश जारी किए थे। इसके खिलाफ विनोद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 

घटना को लेकर उठा संदेह
याचिका की सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने पाया कि घटना का समय रात 11: 30 बजे का है। दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनकर युवती को लगा कि उसके पिता आए हैं। युवती ने दरवाजा खोला तो आरोपी खड़ा था। उसने जबरजस्ती घर में घुसकर उसके साथ छेड़छाड़ की। शोर मचाने पर पड़ोस में रहने वाला उसका मौसेरा भाई आया। तब आरोपी भाग गया। घटना की रिपोर्ट दूसरे दिन दर्ज करवाई। घटना के 20 मिनट बाद उसके पिता घर लौटे थे।

भाईयों और पिता को नहीं बनाया गवाह
हाईकोर्ट को संदेह इस बात पर हुआ कि घटना के समय कमरे में पीडिता के तीन भाई सो रहे थे। शोर मचाने पर वे नहीं उठे। प्रकरण में उसके तीनों भाई तथा पिता को गवाह नहीं बनाया गया। मौसरे भाई को गवाह बनाया गया था। पीडिता तथा उसके मौसरे भाई के बयान में विरोधाभास था। न्यायालय व अपीलीय अदालत ने उसे नजरअंदाज कर दिया। पीड़िता तथा याचिककर्ता में प्रेम संबंध थे। वह उसका पड़ोसी था। एकलपीठ ने प्रकरण को संदेह से परे नहीं माना और सजा के आदेश को निरस्त कर दिया।

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