सुन-लो-सरकार!-एंबुलेंस-न-मिलने-से-महिला-का-शव-पांच-किलोमीटर-दूर-रिक्शे-से-ले-गए-और-ले-आए,-मृतक-सरपंच-की-सास-थी
रिक्शे में शव को ले जाते हुए - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us शहडोल में स्वतंत्रता दिवस की खुशियों के बीच बुढ़ार थाना क्षेत्र से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक तस्वीर सामने आई है। यहां शव वाहन और एंबुलेंस नहीं मिलने के बाद एक बेटे को अपनी मां की लाश मालवाहक रिक्शे में घर ले जानी पड़ी। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस महिला की लाश घर से अस्पताल और फिर अस्पताल से घर तक बीच सड़क रिक्शे से लाई और ले जाई गई, वह उस गांव के सरपंच की सास थी।  जानकारी के अनुसार, बुढ़ार मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चीटूहला है। यहां की सरपंच छोटी बाई कोल पति कैलाश कोल की सास दुलारिया कोल पति स्वर्गीय घूरवा कोल की सोमवार रात घर में स्थित कुएं में गिरने से मौत हो गई थी। इसकी सूचना परिजनों द्वारा बुढ़ार थाना पुलिस को दी गई। शव को बाहर निकलवाकर कागजी कार्रवाई के बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल भिजवाने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। लेकिन संबंधित थाने की पुलिस ने परिजनों को शव अस्पताल लाने की बात कहकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली। इसके बाद मृतिका के परिजनों द्वारा बुढ़ार अस्पताल से एंबुलेंस और शव वाहन गांव भेजने के लिए संपर्क किया, लेकिन वहां नहीं मिला। उसके बाद मृतिका के पुत्र (सरपंच पति) और एक अन्य लोग शव को मालवाहक रिक्शे में रखकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बुढ़ार लेकर आए। इस दौरान घर से अस्पताल तक पांच किलोमीटर तक मुख्य मार्ग में इंसानियत शर्मसार होती रही। इसके बाद पोस्टमॉर्टम के बाद फिर से शव को रिक्शे में ले जाना पड़ा। क्योंकि अब भी न तो पुलिस ने और न ही अस्पताल के जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई।  इस दृश्य ने सरकार के उस दावे की पोल खोलकर रख दी है, जिसमें गांव के अंतिम छोर तक विकास का दम भरा जाता है। शहर से सटे गांव और एक जनप्रतिनिधि (सरपंच) के घर के लोगों को जब एक शव वाहन नसीब नहीं हुआ तो फिर दूरदराज के गांवों में क्या सुविधाएं मिल रही होंगी, इसका अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है। बुढ़ार अस्पताल से नगर होकर गुजरता यह दृश्य लोगों ने अपने मोबाइल कैमरे में तो कैद किया, लेकिन इंसानियत लोगों की नहीं जागी और उसकी मदद करने कोई आगे भी नहीं आया।

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रिक्शे में शव को ले जाते हुए – फोटो : अमर उजाला

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शहडोल में स्वतंत्रता दिवस की खुशियों के बीच बुढ़ार थाना क्षेत्र से इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक तस्वीर सामने आई है। यहां शव वाहन और एंबुलेंस नहीं मिलने के बाद एक बेटे को अपनी मां की लाश मालवाहक रिक्शे में घर ले जानी पड़ी। सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस महिला की लाश घर से अस्पताल और फिर अस्पताल से घर तक बीच सड़क रिक्शे से लाई और ले जाई गई, वह उस गांव के सरपंच की सास थी। 

जानकारी के अनुसार, बुढ़ार मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत चीटूहला है। यहां की सरपंच छोटी बाई कोल पति कैलाश कोल की सास दुलारिया कोल पति स्वर्गीय घूरवा कोल की सोमवार रात घर में स्थित कुएं में गिरने से मौत हो गई थी। इसकी सूचना परिजनों द्वारा बुढ़ार थाना पुलिस को दी गई। शव को बाहर निकलवाकर कागजी कार्रवाई के बाद शव को पोस्टमॉर्टम के लिए अस्पताल भिजवाने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। लेकिन संबंधित थाने की पुलिस ने परिजनों को शव अस्पताल लाने की बात कहकर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली।

इसके बाद मृतिका के परिजनों द्वारा बुढ़ार अस्पताल से एंबुलेंस और शव वाहन गांव भेजने के लिए संपर्क किया, लेकिन वहां नहीं मिला। उसके बाद मृतिका के पुत्र (सरपंच पति) और एक अन्य लोग शव को मालवाहक रिक्शे में रखकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बुढ़ार लेकर आए। इस दौरान घर से अस्पताल तक पांच किलोमीटर तक मुख्य मार्ग में इंसानियत शर्मसार होती रही। इसके बाद पोस्टमॉर्टम के बाद फिर से शव को रिक्शे में ले जाना पड़ा। क्योंकि अब भी न तो पुलिस ने और न ही अस्पताल के जिम्मेदारों ने अपनी जिम्मेदारी निभाई। 

इस दृश्य ने सरकार के उस दावे की पोल खोलकर रख दी है, जिसमें गांव के अंतिम छोर तक विकास का दम भरा जाता है। शहर से सटे गांव और एक जनप्रतिनिधि (सरपंच) के घर के लोगों को जब एक शव वाहन नसीब नहीं हुआ तो फिर दूरदराज के गांवों में क्या सुविधाएं मिल रही होंगी, इसका अंदाजा स्वयं लगाया जा सकता है। बुढ़ार अस्पताल से नगर होकर गुजरता यह दृश्य लोगों ने अपने मोबाइल कैमरे में तो कैद किया, लेकिन इंसानियत लोगों की नहीं जागी और उसकी मदद करने कोई आगे भी नहीं आया।

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