लालू-प्रसाद-की-तरह-राहुल-गांधी-के-चुनाव-लड़ने-पर-भी-लगेगी-रोक?-जानें-क्या-कहता-है-कानून
नई दिल्ली : मानहानि के एक मामले कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को गुजरात के सूरत की एक निचली अदालत से दो साल की सजा सुनाई गई है. अदालत की ओर से राहुल गांधी के खिलाफ दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद आपराधिक मामलों में सजा पाए जनप्रतिनिधियों की विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा की सदस्यता के मुद्दे पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. सवाल यह भी पैदा हो रहा है कि क्या राहुल गांधी की संसद की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी और लालू प्रसाद यादव की तरह उनके चुनाव लड़ने पर भी कम से कम छह साल तक रोक लगाई जा सकती है? आइए, जानते हैं कि क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, जनप्रतिनिधित्व कानून और मीडिया की रिपोर्ट? क्या है लालू प्रसाद का मामला मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने 3 अक्टूबर 2013 को चारा घोटाला मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी. हालांकि, उस समय करीब दो महीने तक जेल में रहने के बाद 13 दिसंबर को लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी, लेकिन लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता जगदीश शर्मा को चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोकसभा से अयोग्य ठहराया दिया गया था. इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी. इतना ही, चुनाव के नये नियमों के अनुसार, लालू प्रसाद यादव की लोकसभा की सदस्यता रद्द हो जाने के बाद उन पर करीब 11 साल तक लोकसभा चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गई थी. क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसके अलावा, आपराधिक चरित्र के जनप्रतिनिधियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को अपना एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्देश के अनुसार, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में देश के किसी भी अदालत के द्वारा 2 साल से अधिक की सजा सुनाई गई है, तो ऐसी स्थिति में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर तत्काल प्रभाव से लागू है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) निरस्त कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने इन दागी प्रत्याशियों को एक राहत जरूर दी है. सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला इनके पक्ष में आएगा, तो इनकी सदस्यता खुद ही ही वापस हो जाएगी. जनप्रतिनिधि संरक्षण कानूनी प्रावधान रद्द इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसद-विधायकों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनी प्रावधान निरस्त कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि की अपील लंबित होने तक उसे पद पर बने रहने की अनुमति देने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को गैर-कानूनी करार दे दिया था. जेल में बंद जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ने-वोट देने से वंचित इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, किसी आपराधिक मामले में दोष सिद्ध होने के बाद जेल में बंद किसी नेता को वोट देने का अधिकार भी नहीं है और न ही वे चुनाव लड़ सकेंगे. अदालत के फैसले के मुताबिक, जेल जाने के बाद उन्हें नामांकन करने का अधिकार नहीं होगा. हालांकि, 10 जुलाई 2013 से पहले सजा पा चुके लोगों पर यह फैसला लागू नहीं है. क्या कहता है जनप्रतिनिधि कानून इसके अलावा भारत में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के अनुसार, आपराधिक मामले में (दो साल या उससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत) दोषी करार किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को तब तक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था, जब तक उसकी ओर से ऊपरी अदालतों में अपील दायर की गई हो. जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है, तो वह अयोग्य हो जाएगा. जेल से रिहा होने के छह साल बाद तक वह जनप्रतिनिधि बनने के लिए अयोग्य रहेगा. जनप्रतिनिधि कानून की उपधारा 8(4) में प्रावधान है कि दोषी ठहराए जाने के तीन महीने तक किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता है और दोषी ठहराए गए सांसद या विधायक ने कोर्ट के निर्णय को इन दौरान यदि ऊपरी अदालत में चुनौती दी है, तो वहां मामले की सुनवाई पूरी होने तक उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की उपधारा 8(4) को ही निरस्त किया है. क्या राहुल गांधी की भी चली जाएगी सदस्यता सूरत की निचली अदालत की ओर से राहुल गांधी के खिलाफ दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी संसद की सदस्यता किस स्थिति में जा सकती है? मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, निचली अदालत के फैसले की कॉपी को अगर प्रशासन लोकसभा सचिवालय को भेज देता है और स्पीकर उसे स्वीकार कर लेते हैं, तो ऐसी स्थिति में राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त हो सकती है. इसके साथ ही, कहा यह भी जा रहा है कि राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर छह साल की रोक भी लग सकती है. ऐसे में, राहुल गांधी कुल आठ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. राहुल गांधी के पास क्या है विकल्प कानून के जानकारों के अनुसार, मानहानि के मामले में सूरत की निचली अदालत की ओर से दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद राहुल गांधी को संसद की सदस्यता बनाए रखने के सारे विकल्प बंद नहीं हुए हैं. राहत पाने के लिए राहुल गांधी निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं. हाईकोर्ट से अगर निचली अदालत के फैसले पर स्टे लग जाता है, तो उनकी सदस्यता बच सकती है. अब अगर हाईकोर्ट भी निचली अदालत के फैसले पर स्टे देने से इनकार कर देता है, तो उन्हें फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा. सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिलने के बाद ही उनकी सदस्यता बच सकती है.

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नई दिल्ली : मानहानि के एक मामले कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को गुजरात के सूरत की एक निचली अदालत से दो साल की सजा सुनाई गई है. अदालत की ओर से राहुल गांधी के खिलाफ दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद आपराधिक मामलों में सजा पाए जनप्रतिनिधियों की विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा की सदस्यता के मुद्दे पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. सवाल यह भी पैदा हो रहा है कि क्या राहुल गांधी की संसद की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी और लालू प्रसाद यादव की तरह उनके चुनाव लड़ने पर भी कम से कम छह साल तक रोक लगाई जा सकती है? आइए, जानते हैं कि क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, जनप्रतिनिधित्व कानून और मीडिया की रिपोर्ट?

क्या है लालू प्रसाद का मामला

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत ने 3 अक्टूबर 2013 को चारा घोटाला मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को 5 साल की कैद और 25 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी. हालांकि, उस समय करीब दो महीने तक जेल में रहने के बाद 13 दिसंबर को लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी, लेकिन लालू प्रसाद यादव और जनता दल यूनाइटेड (जदयू) नेता जगदीश शर्मा को चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोकसभा से अयोग्य ठहराया दिया गया था. इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी. इतना ही, चुनाव के नये नियमों के अनुसार, लालू प्रसाद यादव की लोकसभा की सदस्यता रद्द हो जाने के बाद उन पर करीब 11 साल तक लोकसभा चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दी गई थी.

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

इसके अलावा, आपराधिक चरित्र के जनप्रतिनिधियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को अपना एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए निर्देश के अनुसार, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में देश के किसी भी अदालत के द्वारा 2 साल से अधिक की सजा सुनाई गई है, तो ऐसी स्थिति में उनकी सदस्यता (संसद और विधानसभा से) रद्द हो जाएगी. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों पर तत्काल प्रभाव से लागू है. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8 (4) निरस्त कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने इन दागी प्रत्याशियों को एक राहत जरूर दी है. सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला इनके पक्ष में आएगा, तो इनकी सदस्यता खुद ही ही वापस हो जाएगी.

जनप्रतिनिधि संरक्षण कानूनी प्रावधान रद्द

इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद सांसद-विधायकों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनी प्रावधान निरस्त कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने दोषी निर्वाचित प्रतिनिधि की अपील लंबित होने तक उसे पद पर बने रहने की अनुमति देने वाले जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान को गैर-कानूनी करार दे दिया था.

जेल में बंद जनप्रतिनिधि चुनाव लड़ने-वोट देने से वंचित

इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, किसी आपराधिक मामले में दोष सिद्ध होने के बाद जेल में बंद किसी नेता को वोट देने का अधिकार भी नहीं है और न ही वे चुनाव लड़ सकेंगे. अदालत के फैसले के मुताबिक, जेल जाने के बाद उन्हें नामांकन करने का अधिकार नहीं होगा. हालांकि, 10 जुलाई 2013 से पहले सजा पा चुके लोगों पर यह फैसला लागू नहीं है.

क्या कहता है जनप्रतिनिधि कानून

इसके अलावा भारत में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान के अनुसार, आपराधिक मामले में (दो साल या उससे ज्यादा सजा के प्रावधान वाली धाराओं के तहत) दोषी करार किसी निर्वाचित प्रतिनिधि को तब तक अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता था, जब तक उसकी ओर से ऊपरी अदालतों में अपील दायर की गई हो. जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8(3) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है, तो वह अयोग्य हो जाएगा. जेल से रिहा होने के छह साल बाद तक वह जनप्रतिनिधि बनने के लिए अयोग्य रहेगा.

जनप्रतिनिधि कानून की उपधारा 8(4) में प्रावधान है कि दोषी ठहराए जाने के तीन महीने तक किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य करार नहीं दिया जा सकता है और दोषी ठहराए गए सांसद या विधायक ने कोर्ट के निर्णय को इन दौरान यदि ऊपरी अदालत में चुनौती दी है, तो वहां मामले की सुनवाई पूरी होने तक उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून की उपधारा 8(4) को ही निरस्त किया है.

क्या राहुल गांधी की भी चली जाएगी सदस्यता

सूरत की निचली अदालत की ओर से राहुल गांधी के खिलाफ दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी संसद की सदस्यता किस स्थिति में जा सकती है? मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, निचली अदालत के फैसले की कॉपी को अगर प्रशासन लोकसभा सचिवालय को भेज देता है और स्पीकर उसे स्वीकार कर लेते हैं, तो ऐसी स्थिति में राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त हो सकती है. इसके साथ ही, कहा यह भी जा रहा है कि राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर छह साल की रोक भी लग सकती है. ऐसे में, राहुल गांधी कुल आठ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे.

राहुल गांधी के पास क्या है विकल्प

कानून के जानकारों के अनुसार, मानहानि के मामले में सूरत की निचली अदालत की ओर से दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद राहुल गांधी को संसद की सदस्यता बनाए रखने के सारे विकल्प बंद नहीं हुए हैं. राहत पाने के लिए राहुल गांधी निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं. हाईकोर्ट से अगर निचली अदालत के फैसले पर स्टे लग जाता है, तो उनकी सदस्यता बच सकती है. अब अगर हाईकोर्ट भी निचली अदालत के फैसले पर स्टे देने से इनकार कर देता है, तो उन्हें फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा. सुप्रीम कोर्ट से स्टे मिलने के बाद ही उनकी सदस्यता बच सकती है.