लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए जागरूक किया
स्वदेश लौटने के बाद वह पंजाब के कपूरथला, होशियारपुर व जालंधर जैसे स्थानों में सक्रिय हो गयीं. यहां लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए जागरूक करती थीं. इसी क्रम में उन्हें कई बार जेल की यात्रा करनी पड़ी. तमाम तरह की परेशानियों के बावजूद वह पीछे नहीं हटीं. अपने क्रांतिकारी कदमों की वजह से वह एक बार फिर ब्रिटिश हुकूमत की आंखों में चढ़ गयीं. 1929 में ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें पकड़ लिया. लाहौर (पाकिस्तान) के एक किला में वह दो साल तक कैद रहीं. इस दौरान उन्हें लगातार प्रताड़ित किया गया. जानकारों का कहना है कि दो वर्ष साल बाद जब वह जेल से बाहर आयीं, तो बहुत कमजोर और बीमार हो गयीं थी. हालांकि, उनकी रगों में बहने वाले क्रांतिकारी रक्त ने आराम नहीं किया. कुछ साल बाद उन्होंने वतन पर अपनी जान कुर्बान कर दी.
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