मेरी-माटी,-मेरा-देश-:-उत्तराखंड-की-पहली-महिला-स्वतंत्रता-सेनानी-है-बिश्नी-देवी,-पढ़ें-इस-बहादुर-बेटी-की-कहानी
जेल में बंद सेनानियों के परिजनों के लिए धन भी इकट्ठा करती थीं जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को फूल देती थीं. उनकी आरती करके उनके जज्बे को सलाम करती थीं. आंदोलनकारियों की महिलाओं का हौसला बढ़ाती थीं. जेल में बंद सेनानियों के परिजनों के लिए धन भी इकट्ठा करती थीं. बात 25 मई, 1930 की है. अल्मोड़ा नगर पालिका पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया गया. स्वयंसेवकों के एक जुलूस, जिसमें महिलाएं भी थीं, को अंग्रेज सैनिकों ने रोका. इसके बाद संघर्ष हुआ, जिसमें मोहनलाल जोशी व शांतिलाल त्रिवेदी जैसे नायक जख्मी हो गये. इस घटना से वहां पर मौजूद बिश्नी देवी विचलित नहीं हुईं.

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जेल में बंद सेनानियों के परिजनों के लिए धन भी इकट्ठा करती थीं

जेल जाने वाले आंदोलनकारियों को फूल देती थीं. उनकी आरती करके उनके जज्बे को सलाम करती थीं. आंदोलनकारियों की महिलाओं का हौसला बढ़ाती थीं. जेल में बंद सेनानियों के परिजनों के लिए धन भी इकट्ठा करती थीं. बात 25 मई, 1930 की है. अल्मोड़ा नगर पालिका पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का फैसला किया गया. स्वयंसेवकों के एक जुलूस, जिसमें महिलाएं भी थीं, को अंग्रेज सैनिकों ने रोका. इसके बाद संघर्ष हुआ, जिसमें मोहनलाल जोशी व शांतिलाल त्रिवेदी जैसे नायक जख्मी हो गये. इस घटना से वहां पर मौजूद बिश्नी देवी विचलित नहीं हुईं.