अमर उजाला ग्राफिक्स - फोटो : अमर उजाला विस्तार को खां, अपने मधपिरदेश में कांगरेस को चुनाव जिताऊ मुद्दे की तलाश हेगी, सो हर रोज नए-नए टोटके आजमाए जा रिए हें। पेले दारू का मुद्दा चला तो फिर ‘लाडली भेना योजना’ में कांगरेस ने बीजेपी से आगे निकलने की कोशिश करी। अब साल 2019 को याद करके पार्टी ने किसानों के मसले पे फिर हाथ डाल दिया हे। कांगरेस के सस्पेंड पड़े विधायक जीतू पटवारी ने ऐलान करा के इस बार शिवराज सरकार से गेहूं पेदा करने वाले किसानो से उनका माल 3 हजार रुपये क्विंटल खरीदने की मांग को लेके हर विधानसभा क्षेत्र में यात्रा निकालेगी। बता दें के सवा साल हकूमत में रई कमलनाथ सरकार ने अपने जमाने में किसानो को एमएसपी पे 160 रू. प्रति क्विंटल बोनस दिया था ओर किसानों की कर्ज माफी करी थी।   मियां, मधपिरदेश में इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव में कुर्सी की लड़ाई अब किसानो की लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश कांगरेस ने शुरू कर दी हे। इसके पेले पिरदेश के मुखमंतरी ओर मामाजी शिवराजसिंह चोहान ने आदिवासी ओर महिला  वोटरो को रिझाने के लिए ऐलानों की झड़ी लगा दी। एसे में कांगरेस को सूझ नई रिया था कि सो टंच नया मुद्दा कहां से खोद के लाएं। लिहाजा उसने अब किसानों का झंडा बुलंद करने की सोच ली हे। पार्टी को लग रिया हे के गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य शर्तिया टोटका साबित हो सकता हे। येई वजह हे कांगरेस के लड़ाकू विधायक जीतू पटवारी ने विधानसभा में मांग करी के इस बार राज्य सरकार किसानों से मिनिमम 3 हजार रुपये क्विंटल के भाव से गेहूं खरीदे। मोदी सरकार ने इस साल गेहूं की एमएसपी ( न्यूनतम समर्थन मूल्य) 2125 रू. फी क्विंटल पेले ई से घोषित कर रखी हे। सरकार का दावा हे के भाव ये पिछले साल से 115 रूपिए पिरती क्विंटल ज्यादा हे। मगर कांगरेस इसे भोत कमती मान रई हे। सो अब वो किसानों से 3 हजार रू. क्विंटल में गेहूं खरीदी की मांग को लेके पिरदेश की हर विधानसभा में यात्रा निकालेगी। साथ में किसानों  को समझाएगी के ‘किसान के बेटे’ के राज में ई उनको माल का सई दाम नई मिल रिया। उधर जीतू पटवारी ने सरकार पे ये तक इल्जाम तक लगाया के विधानसभा में किसानों का मुददा उठाने पे उन्हे विधानसभा से सस्पेंड करवा दिया गया। मियां, अगर सच में कांगरेस गेहूं खरीदी भाव को लेकर गांव गांव घूमने लगी तो बीजेपी का चुनावी आटा गीला हो सकता हे। जीतू पटवारी का ये दावा भी हेगा के गेहूं के जियादा रेट को लेके कई बीजेपी वाले भी भीतर से उनका समर्थन कर रिए हें। हालांकि पिरदेश में इस साल एमएसपी पे गेहूं खरीदी के वास्ते किसानों का रजिस्ट्रेशन 28 फरवरी तक हो चुका हेगा। सूबे में 3 हजार 480 खरीदी केंन्द्रों से किसानो से गेहूं खरीदी होनी हे। इस साल सरकार करीब 80 लाख टन गेहूं किसानों से खरीदने वाली हे। वेसे अपना एमपी अब सोयाबीन स्टेट से व्हीट स्टेट में तब्दील हो रिया हे। पूरे मुल्क की गेहूं पेदावार का 20 फीसदी अकेले एमपी पेदा करता हे। यहां के किसानों ने सूबे को गेहूं पेदावार में यूपी के बाद नंबर दो की पोजिशन पे ला खड़ा करा हे। गेहूं खरीदी के अलावा एमपी का गेहूं स्वाद में तो यूपी के गेहूं से ज्यादा जायकेदार हे। पूरी दुनिया में ये सीहोर गेहूं के नाम से बिकता हेगा। पिछले साल तो यूक्रेन की लड़ाई की वजह से तमाम गेहूं निर्यात हुआ। सो शुरू में किसानों को मंडी से बेहतर भाव मिला। ऐसे में सरकारी खरीद कम हुई। इस बार सरकार पेले से ज्यादा चौकन्नी हे। मगर अगर कांगरेस की हवा काम कर गई तो किसान सरकार पे 3 हजार रू. फी क्विंटल  के भाव से गेहूं खरीदी की मांग कर सरकार की हवा टाइट कर सकते हें। सरकार अगर ये मांग न मानी तो उसे किसानो की नाराजी का सामना कर पड़ सकता हे। बहरहाल गेहूं के ऊंचे भाव की मांग अगला चुनावी भाव भी ते कर सकती हे। आगे-आगे देखिए होता हे क्या?                             -बतोलेबाज डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):  यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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अमर उजाला ग्राफिक्स – फोटो : अमर उजाला

विस्तार को खां, अपने मधपिरदेश में कांगरेस को चुनाव जिताऊ मुद्दे की तलाश हेगी, सो हर रोज नए-नए टोटके आजमाए जा रिए हें। पेले दारू का मुद्दा चला तो फिर ‘लाडली भेना योजना’ में कांगरेस ने बीजेपी से आगे निकलने की कोशिश करी। अब साल 2019 को याद करके पार्टी ने किसानों के मसले पे फिर हाथ डाल दिया हे। कांगरेस के सस्पेंड पड़े विधायक जीतू पटवारी ने ऐलान करा के इस बार शिवराज सरकार से गेहूं पेदा करने वाले किसानो से उनका माल 3 हजार रुपये क्विंटल खरीदने की मांग को लेके हर विधानसभा क्षेत्र में यात्रा निकालेगी। बता दें के सवा साल हकूमत में रई कमलनाथ सरकार ने अपने जमाने में किसानो को एमएसपी पे 160 रू. प्रति क्विंटल बोनस दिया था ओर किसानों की कर्ज माफी करी थी।  

मियां, मधपिरदेश में इस साल के आखिर में होने वाले चुनाव में कुर्सी की लड़ाई अब किसानो की लड़ाई में तब्दील करने की कोशिश कांगरेस ने शुरू कर दी हे। इसके पेले पिरदेश के मुखमंतरी ओर मामाजी शिवराजसिंह चोहान ने आदिवासी ओर महिला  वोटरो को रिझाने के लिए ऐलानों की झड़ी लगा दी। एसे में कांगरेस को सूझ नई रिया था कि सो टंच नया मुद्दा कहां से खोद के लाएं। लिहाजा उसने अब किसानों का झंडा बुलंद करने की सोच ली हे। पार्टी को लग रिया हे के गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य शर्तिया टोटका साबित हो सकता हे।

येई वजह हे कांगरेस के लड़ाकू विधायक जीतू पटवारी ने विधानसभा में मांग करी के इस बार राज्य सरकार किसानों से मिनिमम 3 हजार रुपये क्विंटल के भाव से गेहूं खरीदे। मोदी सरकार ने इस साल गेहूं की एमएसपी ( न्यूनतम समर्थन मूल्य) 2125 रू. फी क्विंटल पेले ई से घोषित कर रखी हे। सरकार का दावा हे के भाव ये पिछले साल से 115 रूपिए पिरती क्विंटल ज्यादा हे। मगर कांगरेस इसे भोत कमती मान रई हे। सो अब वो किसानों से 3 हजार रू. क्विंटल में गेहूं खरीदी की मांग को लेके पिरदेश की हर विधानसभा में यात्रा निकालेगी। साथ में किसानों  को समझाएगी के ‘किसान के बेटे’ के राज में ई उनको माल का सई दाम नई मिल रिया। उधर जीतू पटवारी ने सरकार पे ये तक इल्जाम तक लगाया के विधानसभा में किसानों का मुददा उठाने पे उन्हे विधानसभा से सस्पेंड करवा दिया गया।

मियां, अगर सच में कांगरेस गेहूं खरीदी भाव को लेकर गांव गांव घूमने लगी तो बीजेपी का चुनावी आटा गीला हो सकता हे। जीतू पटवारी का ये दावा भी हेगा के गेहूं के जियादा रेट को लेके कई बीजेपी वाले भी भीतर से उनका समर्थन कर रिए हें। हालांकि पिरदेश में इस साल एमएसपी पे गेहूं खरीदी के वास्ते किसानों का रजिस्ट्रेशन 28 फरवरी तक हो चुका हेगा। सूबे में 3 हजार 480 खरीदी केंन्द्रों से किसानो से गेहूं खरीदी होनी हे। इस साल सरकार करीब 80 लाख टन गेहूं किसानों से खरीदने वाली हे। वेसे अपना एमपी अब सोयाबीन स्टेट से व्हीट स्टेट में तब्दील हो रिया हे। पूरे मुल्क की गेहूं पेदावार का 20 फीसदी अकेले एमपी पेदा करता हे।

यहां के किसानों ने सूबे को गेहूं पेदावार में यूपी के बाद नंबर दो की पोजिशन पे ला खड़ा करा हे। गेहूं खरीदी के अलावा एमपी का गेहूं स्वाद में तो यूपी के गेहूं से ज्यादा जायकेदार हे। पूरी दुनिया में ये सीहोर गेहूं के नाम से बिकता हेगा। पिछले साल तो यूक्रेन की लड़ाई की वजह से तमाम गेहूं निर्यात हुआ। सो शुरू में किसानों को मंडी से बेहतर भाव मिला। ऐसे में सरकारी खरीद कम हुई। इस बार सरकार पेले से ज्यादा चौकन्नी हे। मगर अगर कांगरेस की हवा काम कर गई तो किसान सरकार पे 3 हजार रू. फी क्विंटल  के भाव से गेहूं खरीदी की मांग कर सरकार की हवा टाइट कर सकते हें। सरकार अगर ये मांग न मानी तो उसे किसानो की नाराजी का सामना कर पड़ सकता हे। बहरहाल गेहूं के ऊंचे भाव की मांग अगला चुनावी भाव भी ते कर सकती हे। आगे-आगे देखिए होता हे क्या?                        
 
  -बतोलेबाज डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):

 यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें blog@auw.co.in पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

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