मैं अंतिम समय तक सतत उनके संपर्क में रहा. मैं हाल में जब भी उनको फोन करता था, तो वे चार बार पूछने के बाद ही अपनी बीमारी के बारे में बात करते थे, अन्यथा वे हंस कर टाल जाते थे. उनकी इच्छा रहती थी कि मैं किसी पर बोझ नहीं बनूं. शारीरिक कष्ट के बावजूद भी वे प्रसन्नचित्त नजर आते थे. बीमारी में भी उनके मन में हमेशा ये भाव रहता था कि मैं समाज के लिए, देश के लिए क्या करूं. उनका शैक्षणिक रिकॉर्ड काफी शानदार था और इसने उनके काम करने के तरीकों को एक खास आयाम दिया. वे बहुत अच्छे पाठक भी थे. जब भी कुछ अच्छा पढ़ते थे, तो उसे उस विषय से संबंधित लोगों को भेज देते थे. मुझे अक्सर ऐसी चीजें उनसे प्राप्त होती थीं, जिन्हें मैं अपने लिए बहुत उपयोगी पाता था. अर्थशास्त्र व नीतिगत मामलों की गहरी समझ रखते थे. वे एक ऐसा भारत देखना चाहते थे, जो किसी पर भी निर्भर नहीं हो. उन्होंने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी, जिसके प्रत्येक नागरिक के लिए आत्मनिर्भरता जीवन की वास्तविकता हो. एक ऐसे समाज का निर्माण हो, जहां सम्मान, सशक्तीकरण और सामूहिक समृद्धि की भावना हो.
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