ब्रिटिश-हुकूमत-के-खिलाफ-एक-बेखौफ-आवाज,-बचपन-में-ही-स्वाधीनता-आंदोलन-में-कूद-पड़ी-थी-गुजरात-की-उषा-मेहता
आठ वर्ष की उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में उषा मेहता, महज आठ वर्ष की उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ीं. अपने से तीन गुना बड़े लोगों के साथ कदम से कदम मिला कर चल पड़ीं. 1928 में अंग्रेजों के खिलाफ मार्च में शामिल होकर कर 'साइमन वापस जाओ' के नारे लगाये. इस छोटी-सी उम्र में अंग्रेजी हुकूमत की ईंटें भी खायीं. कहा जाता है कि जब वह महज पांच साल की थीं, तो उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से एक शिविर में हुई थी. इस दौरान वह गांधीजी के विचारों से इतना प्रभावित हुईं कि बाद में उनकी अनुयायी बन गयीं. आगे वह गांधीवादी विचारधारा व दर्शन की एक प्रमुख प्रचारक के रूप में उभरीं.

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आठ वर्ष की उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में

उषा मेहता, महज आठ वर्ष की उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ीं. अपने से तीन गुना बड़े लोगों के साथ कदम से कदम मिला कर चल पड़ीं. 1928 में अंग्रेजों के खिलाफ मार्च में शामिल होकर कर ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाये. इस छोटी-सी उम्र में अंग्रेजी हुकूमत की ईंटें भी खायीं. कहा जाता है कि जब वह महज पांच साल की थीं, तो उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से एक शिविर में हुई थी. इस दौरान वह गांधीजी के विचारों से इतना प्रभावित हुईं कि बाद में उनकी अनुयायी बन गयीं. आगे वह गांधीवादी विचारधारा व दर्शन की एक प्रमुख प्रचारक के रूप में उभरीं.