टोल-प्लाजा-की-वसूली:-लागत-426-करोड़,-अब-तक-वसूल-लिए-1600-करोड़,-नौ-साल-और-जारी-रहेगा-सिलसिला
इंदौर-भोपाल के बीच पांच टोल प्लाजा हैं। - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश की सीमाओं को छू रहे मप्र को अक्सर अपनी सड़कों की दुर्दशा के लिए शर्मिंदगी उठानी पड़ती रही है। प्राइवेट पार्टनरशिप ट्रांसफर मोड पर चमचमाती सड़कों की सौगात मिलना शुरू हुई और लोग इसके बदले अदा की जाने वाली छोटी सी रकम को भी बर्दाश्त करते गए। अदायगी का यह सिलसिला ऐसा चला कि रोड निर्माण में खर्च हुई लागत का चार गुना अदा हो चुका है,  लेकिन देनदारी का क्रम फिलहाल जारी है। करीब 9 साल यह और भी चलते रहने वाला है। भोपाल-इंदौर के बीच बने कॉरिडोर को करीब 14 बरस बीत चुके हैं। वर्ष 2010 में इसका निर्माण हुआ था। सूत्रों के मुताबिक इस निर्माण में करीब 426.64 करोड़ रुपए की लागत आई थी। 12 अगस्त 2010 से शुरू हुई इस निर्माण लागत की वसूली के लिए 200 किलोमीटर के इस सफर में करीब पांच टोल नाके स्थापित किए गए थे। इनसे करीब 40 किलोमीटर के सफर के बदले एक निश्चित राशि वसूली जा रही है। सूत्रों का कहना है कि 14 बरस की इस अवधि में टोल प्लाजा प्रबंधक वाहन चालकों से अब तक करीब 1610 करोड़ रुपए वसूल चुके हैं। जो निर्माण लागत का चार गुना जैसा है। बावजूद इसके इन टोल प्लाजा से 21 मई 2033 तक सतत वसूली जारी रहने वाली है। बाकी बची 9 वर्ष की अवधि में भी करीब 1035 करोड़ रुपए की और वसूली संभावित है। लग जाती दोगुनी राशि पिछले कुछ वर्षों से टोल प्लाजा पर लागू किए गए फास्टैग सिस्टम की कवायद वैसे तो वाहनों को कतार से राहत देने की थी, लेकिन इसकी अनिवार्यता वाहन चालकों पर दोहरा बोझ भी डाल रही है। बिना फास्टैग के टोल प्लाजा से गुजरने वालों को निर्धारित से दोगुनी राशि अदा करने की मजबूरी भी बनी रहती है। इस पर उठा था ऐतराज भोपाल और इंदौर के बीच बने कॉरिडोर के लिए तय की गई योजना में इस मार्ग को सिक्स लेन बनाने की थी। जबकि उसका अधिकांश हिस्सा फोर लेन ही है। इस कॉरिडोर के कंपलीट होने पर आई आपत्ति के बाद इंदौर सीमा में एक हिस्से को सिक्स लेन कर खानापूर्ति कर ली गई थी। इतने टोल इतना टैक्स  सीहोर ₹ 36 आष्टा ₹40 सोनकच्छ ₹63 देवास ₹15 इंदौर ₹55

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इंदौर-भोपाल के बीच पांच टोल प्लाजा हैं। – फोटो : अमर उजाला

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महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश की सीमाओं को छू रहे मप्र को अक्सर अपनी सड़कों की दुर्दशा के लिए शर्मिंदगी उठानी पड़ती रही है। प्राइवेट पार्टनरशिप ट्रांसफर मोड पर चमचमाती सड़कों की सौगात मिलना शुरू हुई और लोग इसके बदले अदा की जाने वाली छोटी सी रकम को भी बर्दाश्त करते गए। अदायगी का यह सिलसिला ऐसा चला कि रोड निर्माण में खर्च हुई लागत का चार गुना अदा हो चुका है,  लेकिन देनदारी का क्रम फिलहाल जारी है। करीब 9 साल यह और भी चलते रहने वाला है।

भोपाल-इंदौर के बीच बने कॉरिडोर को करीब 14 बरस बीत चुके हैं। वर्ष 2010 में इसका निर्माण हुआ था। सूत्रों के मुताबिक इस निर्माण में करीब 426.64 करोड़ रुपए की लागत आई थी। 12 अगस्त 2010 से शुरू हुई इस निर्माण लागत की वसूली के लिए 200 किलोमीटर के इस सफर में करीब पांच टोल नाके स्थापित किए गए थे। इनसे करीब 40 किलोमीटर के सफर के बदले एक निश्चित राशि वसूली जा रही है। सूत्रों का कहना है कि 14 बरस की इस अवधि में टोल प्लाजा प्रबंधक वाहन चालकों से अब तक करीब 1610 करोड़ रुपए वसूल चुके हैं। जो निर्माण लागत का चार गुना जैसा है। बावजूद इसके इन टोल प्लाजा से 21 मई 2033 तक सतत वसूली जारी रहने वाली है। बाकी बची 9 वर्ष की अवधि में भी करीब 1035 करोड़ रुपए की और वसूली संभावित है।

लग जाती दोगुनी राशि
पिछले कुछ वर्षों से टोल प्लाजा पर लागू किए गए फास्टैग सिस्टम की कवायद वैसे तो वाहनों को कतार से राहत देने की थी, लेकिन इसकी अनिवार्यता वाहन चालकों पर दोहरा बोझ भी डाल रही है। बिना फास्टैग के टोल प्लाजा से गुजरने वालों को निर्धारित से दोगुनी राशि अदा करने की मजबूरी भी बनी रहती है।

इस पर उठा था ऐतराज
भोपाल और इंदौर के बीच बने कॉरिडोर के लिए तय की गई योजना में इस मार्ग को सिक्स लेन बनाने की थी। जबकि उसका अधिकांश हिस्सा फोर लेन ही है। इस कॉरिडोर के कंपलीट होने पर आई आपत्ति के बाद इंदौर सीमा में एक हिस्से को सिक्स लेन कर खानापूर्ति कर ली गई थी।

इतने टोल इतना टैक्स  सीहोर ₹ 36 आष्टा ₹40 सोनकच्छ ₹63 देवास ₹15 इंदौर ₹55

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