झारखंड-के-छह-जिला-मुख्यालयों-को-ट्रेन-का-इंतजार?-केंद्रीय-बजट-2024-में-मिलेगा-चुनावी-तोहफा-?
गुमला, सिमडेगा, खूंटी, चतरा, गोड्डा और सरायकेला-खरसावां जिलों के मुख्यालय आज भी रेललाइन से नहीं जुड़े हैं. यहां के बाशिंदों को दूसरे जिलों में जाकर ट्रेन पकड़नी पड़ती है. विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े झारखंड को केंद्र सरकार के 2024-25 के पूर्ण बजट में चुनावी ही सही पर नई रेललाइनों के सौगात की उम्मीद है. बरवाडीह-चिरमिरी लाइन के उद्धार की आशा झारखंड की जनता ने केंद्र की राजग सरकार को 14 में नौ सांसदों का तोहफा दिया है. इसके बदले 23 जुलाई को पेश होने जा रहे केंद्रीय बजट में केंद्र से रिटर्न गिफ्ट की उम्मीद लगा रखी है. उम्मीदों के पाये इसलिए भी मजबूत हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा है. इसलिए झारखंड के लोगों ने केंद्र सरकार से बड़ी चुनावी घोषणाओं की उम्मीद लगा रखी है. सौगात सियासी भले ही हो पर जनता को लुभाने के नाम पर अगर बड़ी परियोजनाएं मिल जाती हैं तो राज्य को विकास की दिशा में बढ़ने में काफी मदद मिलेगी. सिमेडगा के लोग ओडिशा जाकर पकड़ते हैं ट्रेन  झारखंड का एक जिला है सिमडेगा. यहां भारी-भरकम प्रशासनिक अमला रहता है. केंद्र और राज्य सरकार के बड़े-बड़े दफ्तर हैं. लेकिन इस जिले के मुख्यालय यानी सिमडेगा शहर में रहने वाले लोगों को रेलवे से यात्रा करने के लिए ओडिशा जाकर ट्रेन पकड़नी पड़ती है. वहां राउरकेला स्टेशन से अपनी बर्थ का रिजर्वेशन कराना पड़ता है.  कुछ खास रूट के लिए रांची से यात्रा करनी पड़ती है. कुछ लोकल ट्रेन बानो जाकर भी पकड़ते हैं. यही स्थिति गुमला, खूंटी, चतरा, गोड्डा और सरायकेला-खरसावां जिलों के मुख्यालय़ की भी है. इन महत्वपूर्ण शहरों के अभी तक रेललाइन से नहीं जुड़ पाने के कारण यहां आर्थिक गतिविधियां जोर नहीं पकड़ पा रही हैं. इन शहरों के रेललाइन से जुड़ने के बाद यहां अर्थचक्र का विस्तार हो सकेगा. इससे रोजगार और तरक्की का मार्ग भी प्रशस्त होगा.  80 साल पहले पटरियां बिछीं, आज तक नहीं चली ट्रेन  अंग्रेजों ने कोलकाता और मुंबई को और नजदीक लाने के लिए झारखंड के बरवाडीह से लेकर छत्तीसगढ़ के चिरमिरी तक रेललाइन निर्माण की योजना बनाई थी. इस रेललाइन में पटरियां बिछा दी गईं. स्टेशन बना दिए गए. कई जगह कर्मचारियों के रहने के लिए क्वार्टर तक का निर्माण हो गया. पर आज तक इस रेललााइन पर ट्रेन की आवाज सुनने के लिए लोगों के कान तरस गए हैं. 2018 में केंद्र सरकार जगी और बजट में इस रेललाइन के विकास की घोषणा हुई. निर्माण थोड़ा खिसका. फिर जाकर अटक गया. इस रेललाइन के बनने पर कोलकाता और मुंबई के बीच की दूरी 400 किलोमीटर कम हो जाएगी. खासकर पलामू, गढ़वा और लातेहार जिले के लाखों की आबादी को इस रूट से जुड़कर धन और समय दोनों की बचत होगी. झारखंड के छह जिला मुख्यालयों को ट्रेन का इंतजार? केंद्रीय बजट 2024 में मिलेगा चुनावी तोहफा? 2 खान खुल रहे हैं, खनिज निकल रहे हैं, पर नए पीएसयू क्यों नहीं खान और खनिजों के प्रदेश झारखंड में लगातार नए खानों की नीलामी हो रही है. वहां से खनिज भी निकाले जा रहे हैं. पर उन पर आधारित नए उद्योग न के बराबर लग रहे हैं. केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों से इसकी शुरुआत हो सकती है. वैसे भी एचईसी और बोकारो स्टील प्लांट के बाद भारत सरकार की कोई मेगा मैनुफैक्चरिंग इंडटस्ट्री नहीं है. केंद्र सरकार के नए सार्वजनिक उपक्रम के स्थापित होने से झारखंड में दूसरे उद्योगों का भी विकास होगा. इससे नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे. 

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गुमला, सिमडेगा, खूंटी, चतरा, गोड्डा और सरायकेला-खरसावां जिलों के मुख्यालय आज भी रेललाइन से नहीं जुड़े हैं. यहां के बाशिंदों को दूसरे जिलों में जाकर ट्रेन पकड़नी पड़ती है. विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े झारखंड को केंद्र सरकार के 2024-25 के पूर्ण बजट में चुनावी ही सही पर नई रेललाइनों के सौगात की उम्मीद है.

बरवाडीह-चिरमिरी लाइन के उद्धार की आशा झारखंड की जनता ने केंद्र की राजग सरकार को 14 में नौ सांसदों का तोहफा दिया है. इसके बदले 23 जुलाई को पेश होने जा रहे केंद्रीय बजट में केंद्र से रिटर्न गिफ्ट की उम्मीद लगा रखी है.

उम्मीदों के पाये इसलिए भी मजबूत हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ा है. इसलिए झारखंड के लोगों ने केंद्र सरकार से बड़ी चुनावी घोषणाओं की उम्मीद लगा रखी है. सौगात सियासी भले ही हो पर जनता को लुभाने के नाम पर अगर बड़ी परियोजनाएं मिल जाती हैं तो राज्य को विकास की दिशा में बढ़ने में काफी मदद मिलेगी.

सिमेडगा के लोग ओडिशा जाकर पकड़ते हैं ट्रेन  झारखंड का एक जिला है सिमडेगा. यहां भारी-भरकम प्रशासनिक अमला रहता है. केंद्र और राज्य सरकार के बड़े-बड़े दफ्तर हैं. लेकिन इस जिले के मुख्यालय यानी सिमडेगा शहर में रहने वाले लोगों को रेलवे से यात्रा करने के लिए ओडिशा जाकर ट्रेन पकड़नी पड़ती है. वहां राउरकेला स्टेशन से अपनी बर्थ का रिजर्वेशन कराना पड़ता है.  कुछ खास रूट के लिए रांची से यात्रा करनी पड़ती है. कुछ लोकल ट्रेन बानो जाकर भी पकड़ते हैं. यही स्थिति गुमला, खूंटी, चतरा, गोड्डा और सरायकेला-खरसावां जिलों के मुख्यालय़ की भी है. इन महत्वपूर्ण शहरों के अभी तक रेललाइन से नहीं जुड़ पाने के कारण यहां आर्थिक गतिविधियां जोर नहीं पकड़ पा रही हैं. इन शहरों के रेललाइन से जुड़ने के बाद यहां अर्थचक्र का विस्तार हो सकेगा. इससे रोजगार और तरक्की का मार्ग भी प्रशस्त होगा. 

80 साल पहले पटरियां बिछीं, आज तक नहीं चली ट्रेन  अंग्रेजों ने कोलकाता और मुंबई को और नजदीक लाने के लिए झारखंड के बरवाडीह से लेकर छत्तीसगढ़ के चिरमिरी तक रेललाइन निर्माण की योजना बनाई थी. इस रेललाइन में पटरियां बिछा दी गईं. स्टेशन बना दिए गए. कई जगह कर्मचारियों के रहने के लिए क्वार्टर तक का निर्माण हो गया. पर आज तक इस रेललााइन पर ट्रेन की आवाज सुनने के लिए लोगों के कान तरस गए हैं. 2018 में केंद्र सरकार जगी और बजट में इस रेललाइन के विकास की घोषणा हुई. निर्माण थोड़ा खिसका. फिर जाकर अटक गया. इस रेललाइन के बनने पर कोलकाता और मुंबई के बीच की दूरी 400 किलोमीटर कम हो जाएगी. खासकर पलामू, गढ़वा और लातेहार जिले के लाखों की आबादी को इस रूट से जुड़कर धन और समय दोनों की बचत होगी.

झारखंड के छह जिला मुख्यालयों को ट्रेन का इंतजार? केंद्रीय बजट 2024 में मिलेगा चुनावी तोहफा? 2 खान खुल रहे हैं, खनिज निकल रहे हैं, पर नए पीएसयू क्यों नहीं खान और खनिजों के प्रदेश झारखंड में लगातार नए खानों की नीलामी हो रही है. वहां से खनिज भी निकाले जा रहे हैं. पर उन पर आधारित नए उद्योग न के बराबर लग रहे हैं. केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों से इसकी शुरुआत हो सकती है. वैसे भी एचईसी और बोकारो स्टील प्लांट के बाद भारत सरकार की कोई मेगा मैनुफैक्चरिंग इंडटस्ट्री नहीं है. केंद्र सरकार के नए सार्वजनिक उपक्रम के स्थापित होने से झारखंड में दूसरे उद्योगों का भी विकास होगा. इससे नए रोजगार के अवसर पैदा होंगे.