मौत उसी की, जिसका जमाना करे अफसोस- मनमोहन
इधर, शहीद कैप्टन मनोज पांडे के भाई मनमोहन पांडे ने कहा कि वह मरे नहीं हैं, बल्कि अमर हो गये हैं. जब तिरंगा में लिपटा उनका पार्थिव शरीर लखनऊ लाया गया, उस समय का दृश्य मैं नहीं भूल सकता. करीब 15 लाख लोग ताबूत के साथ चल रहे थे और मनोज पांडे अमर रहे के नारे लगा रहे थे. लेफ्टिनेंट पांडे को बटालिक सेक्टर में उनके अदम्य साहस को लेकर मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. मनमोहन ने कहा कि मैं आज भी जब उनकी डायरी पलटता हूं, तो वह महमूद रामपुरी के इस कथन से शुरू होती है- मौत उसी की, जिसका जमाना करे अफसोस.. वरना मरने के लिए तो सभी आते हैं. यह पढ़ कर आज भी मेरी आंखें डबडबा जाती हैं. इधर, मेजर पद्मपाणि आचार्य की पत्नी चारुलता ने कहा कि उनकी शहादत मुझे गर्व से भर देती है. चारुलता के पति जब 1999 में शहीद हुए, तब वह गर्भवती थीं. मेजर आचार्य ने तोलोलिंग की प्रसिद्ध लड़ाई में अपनी जान कुर्बान कर दी थी.
Comments