एसडीएम निशा बांगरे – फोटो : अमर उजाला
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डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे के इस्तीफे से एक बार फिर सियासी मैदान में अफसरों के कूदने को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है। बांगरे ही नहीं, प्रदेश के कई अन्य अधिकारी भी सियासी रण में उतरने की तैयारी में जुटे हैं। उनसे पहले आईएएस वरदमूर्ति मिश्रा भी इस्तीफा देकर अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं। कुछ अधिकरियों ने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं। यह सूची लंबी है। आईये बताते हैं कि प्रदेश के कौन कौन से अधिकारी चुनाव की तैयारी में जुट हैं।
नौकरी से हो रहा मोह भंग
प्रदेश के अधिकारियों का नौकरी से मोह भंग हो रहा है। यही वजह है कि वे नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। छतरपुर की डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इसकी वजह उनके घर के उदघाटन और सर्वधर्म शांति सम्मेलन में शामिल होने अनुमति नहीं देने से धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाना बताया गया। जबकि असल वजह उनकी राजनीति में उतरने की इच्छा बताई जा रही है। वह आमला से चुनाव लड़ने की पहले भी इच्छा जता चुकी हैं।
मिश्रा ने बनाई वास्तविक भारत पार्टी
उनसे पहले पिछले साल पूर्व आईएएस वरद मूर्ति मिश्रा भी चुनाव के लड़ने के लिए वीआरएस ले चुके हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा के 1996 बैच के डिप्टी कलेक्टर को 2014 में आईएएस अवॉर्ड हुआ था। वरद मूर्ति मिश्रा ने नौकरी छोड़कर चुनाव लड़ने का एलान किया था। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी भी बनाईए जिसका नाम वास्तविक भारत पार्टी है। मिश्रा ने सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है।
ये आईपीएस अधिकारी भी कर रहे तैयारी
1987 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी पवन जैन भी चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं वे राजस्थान की धौलपुर की राजाखेड़ी सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, इसके लिए उन्होंने तैयारी भी शुरू कर दी है। वे भी वीआरएस लेने के इच्छुक हैं। जैन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के करीबी हैं। जैन मूलतः राजाखेड़ा के ही रहने वाले हैं। वहीं, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पुरुषोत्तम शर्मा ने भी सरकार को वीआरएस के लिए आवेदन किया था। हालांकि, सरकार ने उनको आवेदन दो विभागीय जांच जारी होने के चलते लौटा दिया। बताया जा रहा है कि पुरुषोत्तम शर्मा भी मुरैना की जौरा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
इन अधिकारियों को मिली सफलता
सुशील चंद्र वर्मा: पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा का नाम सबसे सफल प्रशासनिक अधिकारी के साथ राजनीतिज्ञ के रूप में भी गिना जाता है। वह प्रदेश की सबसे बड़े प्रशासनिक पद पर रहे। इसके बाद भोपाल से भाजपा के चार बार सांसद रहे।
अजीत जोगी: इसके बाद इंदौर कलेक्टर रह चुके स्व. अजीत जोगी का नाम आता है। वे अपने नौकरी के 16 से 17 साल के करियर में कभी मंत्रालय नहीं आए। जब उनको इंदौर कलेक्टर पद से हटाया गया तो वे इस्तीफा देकर सीधे राज्यसभा में चले गए। वे 2000 में छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने।
भागीरथ प्रसाद: 1975 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भागीरथ प्रसाद भी प्रदेश सरकार में प्रमुख सचिव के पद से 2007 में इस्तीफा दिया था। वे पहले इंदौर की देवी अहिल्या देवी यूनिवर्सिटी के कुलपति बने। फिर कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़े, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2014 में भिंड से भाजपा की सीट पर लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे।
पूर्व आईपीएस रुस्तम सिंह: पूर्व आईपीएस रुस्तम सिंह ने भी वीआरएस लेकर भाजपा की टिकट मुरैना से चुनाव लड़ा और जीतकर आए। वे सरकार में मंत्री भी रहे।
गुमान सिंह डामोर: वर्तमान में झाबुआ लोकसभा सीट से सांसद गुमान सिंह डामोर भी पहले जल संसाधन विभाग में ईएनसी थी। वे सेवानिवृत्त के बाद राजनीति में आए और भाजपा के टिकट पर सांसद बने।
इन्हें नहीं मिली सफलता
हीरालाल त्रिवेदी: 2018 के चुनाव के पहले पूर्व आईएएस हीरालाल त्रिवेदी सपाक्स के माध्यम से राजनीति के मैदान में उतरे। उन्होंने सपाक्स नाम से संगठन बनाया। हालांकि, उनको विधानसभा चुनाव में सफलता नहीं मिल पाई।
एमएन बुच और एचएम जोशी: इसके अलावा पूर्व आईएएस अधिकारी एमएन बूच, पूर्व डीजीपी एचएम जोशी भी चुनाव लड़े, लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई।
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