कुबेरेश्वरधाम:-कथा-के-छठे-दिन-पहुंचे-लाखों-श्रद्धालु,-तीनों-पंडाल-भरे-खचाखच,-गुरुपूर्णिमा-पर-लगेगा-महाकुंभ
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सीहोर Published by: दिनेश शर्मा Updated Fri, 19 Jul 2024 06: 45 PM IST माता-पिता की सेवा करने से ही ईश्वर की सच्ची भक्ति होती है, घर में ही ईश्वर है फिर भी लोग ईश्वर की भक्ति के लिए दर-दर भटकते रहते हैं, अगर मानव को ईश्वर की सच्ची भक्ति करनी है तो अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करते हुए उन्हेंने खुश रखे। इस संसार में सभी बुद्धिमान है, लेकिन बुद्धि की शुद्धि करने की जरूरत है, बुद्ध बनने के पहले हमें शुद्ध होना पड़ेगा।  उक्त बात जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी सात दिवसीय शिव महापुराण के छठे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा ने कही। शुक्रवार को करीब ढाई लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण किया। यहां पर लगाए गए तीन पंडाल में सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था। शनिवार को कथा का समापन किया जाएगा, वहीं रविवार को एक दिवसीय गुरु पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया जाएगा।   पंडित मिश्रा ने कहा कि यहां निर्मल चित्त, निस्वार्थ भाव से कि गई हर कामना पूरी होती है। ईश्वर को पाने, मोक्ष पाने की लालसा सभी में रहती है। परमात्मा को पाना है तो जप, तप, भजन, कीर्तन, सत्संग बिना मोह, लालच के करोगे तो परमात्मा जरूर मिलेंगे। जरूरी नहीं कि शिव, राम, कृष्ण भजते रहो। बुजुर्गों, माता-पिता की सेवा में जुटे रहे तो भी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। संसार के सभी धर्म माता-पिता के सम्मान की सीख देते हैं। उनकी सेवा ही ईश्वर की सेवा है। जिन्होंने हमें जन्म देकर इस संसार में आने का अवसर दिया और हमारी लालन में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में माता-पिता का तिरस्कार करना ईश्वर का अपमान है। उन्होंने कहा कि संत पुंडलिक माता-पिता के परम भक्त थे। एक दिन वे अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण वहां प्रकट हो गए। वे पैर दबाने में इतने लीन थे कि अपने इष्टदेव की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया। तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं। पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा, तो भगवान के दर्शन हुए।  आंतरिक रूप से शुद्ध होने के लिए व्यक्ति को सत्संग में आना उन्होंने कहा कि आंतरिक रूप से शुद्ध होने के लिए व्यक्ति को सत्संग में आना चाहिए और पवित्र उपदेशों का पालन करना चाहिए। इससे वह दुखों, चिंताओं और तनावों से मुक्त हो जाएगा और साथ ही वह ईश्वरीय आनंद पाने के योग्य बन जाएगा। इसलिए दिव्य दृष्टि, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाने के लिए व्यक्ति को भगवान के वचनों का जाप करना चाहिए।

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सीहोर Published by: दिनेश शर्मा Updated Fri, 19 Jul 2024 06: 45 PM IST

माता-पिता की सेवा करने से ही ईश्वर की सच्ची भक्ति होती है, घर में ही ईश्वर है फिर भी लोग ईश्वर की भक्ति के लिए दर-दर भटकते रहते हैं, अगर मानव को ईश्वर की सच्ची भक्ति करनी है तो अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा करते हुए उन्हेंने खुश रखे। इस संसार में सभी बुद्धिमान है, लेकिन बुद्धि की शुद्धि करने की जरूरत है, बुद्ध बनने के पहले हमें शुद्ध होना पड़ेगा। 

उक्त बात जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में जारी सात दिवसीय शिव महापुराण के छठे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा ने कही। शुक्रवार को करीब ढाई लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने कथा का श्रवण किया। यहां पर लगाए गए तीन पंडाल में सुबह से श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था। शनिवार को कथा का समापन किया जाएगा, वहीं रविवार को एक दिवसीय गुरु पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया जाएगा।
 

पंडित मिश्रा ने कहा कि यहां निर्मल चित्त, निस्वार्थ भाव से कि गई हर कामना पूरी होती है। ईश्वर को पाने, मोक्ष पाने की लालसा सभी में रहती है। परमात्मा को पाना है तो जप, तप, भजन, कीर्तन, सत्संग बिना मोह, लालच के करोगे तो परमात्मा जरूर मिलेंगे। जरूरी नहीं कि शिव, राम, कृष्ण भजते रहो। बुजुर्गों, माता-पिता की सेवा में जुटे रहे तो भी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। संसार के सभी धर्म माता-पिता के सम्मान की सीख देते हैं। उनकी सेवा ही ईश्वर की सेवा है। जिन्होंने हमें जन्म देकर इस संसार में आने का अवसर दिया और हमारी लालन में कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे में माता-पिता का तिरस्कार करना ईश्वर का अपमान है। उन्होंने कहा कि संत पुंडलिक माता-पिता के परम भक्त थे। एक दिन वे अपने माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण वहां प्रकट हो गए। वे पैर दबाने में इतने लीन थे कि अपने इष्टदेव की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया। तब प्रभु ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने आए हैं। पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा, तो भगवान के दर्शन हुए। 

आंतरिक रूप से शुद्ध होने के लिए व्यक्ति को सत्संग में आना
उन्होंने कहा कि आंतरिक रूप से शुद्ध होने के लिए व्यक्ति को सत्संग में आना चाहिए और पवित्र उपदेशों का पालन करना चाहिए। इससे वह दुखों, चिंताओं और तनावों से मुक्त हो जाएगा और साथ ही वह ईश्वरीय आनंद पाने के योग्य बन जाएगा। इसलिए दिव्य दृष्टि, शारीरिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य पाने के लिए व्यक्ति को भगवान के वचनों का जाप करना चाहिए।

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