महापंचायत में कमलनाथ आदिवासियों से जुड़ी कोई बड़ी घोषणा भी कर सकते हैं। – फोटो : अमर उजाला
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2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल इलाकों में मिले व्यापक जनसमर्थन से कांग्रेस मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने में सफल रही थी। 2023 के चुनाव में पार्टी कई वर्षों से आदिवासियों की सियासत कर रहे कांग्रेस नेताओं के बजाय सामाजिक कार्यकर्ताओं पर ज्यादा भरोसा कर रही है। 30 जुलाई को इंदौर में आदिवासी युवा महापंचायत की कमान आदिवासी युवाओं को दे रखी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ महापंचायत में शामिल होने वाले हैं। इसमें युवा उनसे पूछने वाले हैं कि यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो वे आदिवासियों के लिए क्या करेंगे। महापंचायत में कमलनाथ आदिवासियों से जुड़ी कोई बड़ी घोषणा भी कर सकते हैं।
इस महापंचायत के लिए जो एजेंडा बनाया गया है, उसकी शुरुआत ही यह कहते हुए की गई है कि मध्यप्रदेश में आदिवासी युवाओं को शिक्षा और रोजगार से जान-बूझकर वंचित किया जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में आदिवासियों पर हुई ज्यादतियां भी एजेंडा का प्रमुख हिस्सा हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से रेखांकित करते हुए आयोजकों ने कहा है कि हम चाहते हैं कि सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणा पत्र में बताएं कि उनके पास आदिवासियों के लिए क्या योजना है? इस महापंचायत में आदिवासियों से जुड़े तमाम मुद्दों पर भी खुलकर चर्चा होगी।
मंच पर सिर्फ कमलनाथ और कन्हैया कुमार
कार्यक्रम का जो स्वरूप तय है, उसके मुताबिक मंच पर केवल कमलनाथ और कन्हैया कुमार ही होंगे। मालवा-निमाड़ के प्रमुख आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता और युवा ही मंच साझा करेंगे। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कांग्रेस के जो नेता पहुंचेंगे वे श्रोता की भूमिका में रहेंगे। पिछले एक पखवाड़े से आयोजन को लेकर जो तैयारियां चल रही हैं, उसमें भी बड़ी भूमिका नेताओं की बजाय सामाजिक कार्यकर्ताओं की रखी गई है। इस आयोजन में 35 विधानसभा क्षेत्रों के आदिवासी युवा शामिल होंगे। मालवा-निमाड़ के अलावा इसमें बैतूल और हरदा जिले के युवा भी शिरकत करेंगे।
37 सीट पर अहम भूमिका है आदिवासी मतदाताओं की
मालवा-निमाड़ में 25 सीट ऐसी हैं, जहां आदिवासी मतदाताओं का बाहुल्य है और 12 सीट पर आदिवासी मतदाता निर्णय को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। पिछले चुनाव में यहां इन सीटों पर भाजपा को करारी शिकस्त खाना पड़ी थी और इसी कारण सत्ता उसके हाथ से चली गई थी। इन सीटों पर भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए संघ के नेटवर्क का सहारा ले रही है और राज्य युवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. निशांत खरे को इसका जिम्मा सौंपा गया है। डॉ. खरे ने जयस से जुड़े कुछ प्रभावशाली युवाओं के माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों में अच्छी-खासी दखल कर ली है और भाजपा इस बार यहां परम्परागत नेतृत्व के बजाय नए चेहरों को आगे बढ़ा रही है।
फीडबैक के बाद 6 महीने पहले कांग्रेस ने बदली रणनीति
कांग्रेस के पास मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कांतिलाल भूरिया, बाला बच्चन, सुरेंद्रसिंह बघेल हनी, उमंग सिंघार, झूमा सोलंकी, ग्यारसीलाल रावत, हर्ष गेहलोत, डॉ. विक्रांत भूरिया जैसे अनेक प्रभावशाली नेता हैं और आदिवासियों के बीच इन नेताओं की मजबूत पैठ का फायदा उसे हमेशा मिलता रहा है। लेकिन अलग-अलग स्तर पर मिले फीडबैक के बाद कांग्रेस ने इस बार अपनी रणनीति में बदलाव किया है। पार्टी ने स्थापित नेताओं की बजाय प्रभावशाली आदिवासियों को आगे बढ़ा रखा है और नई पीढ़ी के युवक-युवतियों में पकड़ मजबूत करने के लिए इनकी मदद ली जा रही है। पिछले 6 महीने से एक टीम इस पर काम कर रही है।
जयस भी अब उतनी मजबूत नहीं
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों पर जयस कांग्रेस के लिए बहुत मददगार सिद्ध हुई थी और इसी कारण कांग्रेस आदिवासी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करने में सफल रही थी। इस बार जयस उतनी मजबूत स्थिति में नहीं है। इसका एक बड़ा वर्ग भाजपा के मददगार की भूमिका में है, तो दूसरा खुलकर कांग्रेस की मदद कर रहा है। आदिवासी युवाओं में भी जयस का प्रभाव कम हुआ है। इसी के चलते आदिवासी युवा महापंचायत के आयोजन में जयस को कोई खास तवज्जो नहीं मिल रही है।
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