न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सीहोर Published by: दिनेश शर्मा Updated Fri, 06 Sep 2024 01: 08 PM IST
Sehore Chintaman Ganesh Mandir : देश में चिंतामन सिद्ध गणेश की चार स्वयंभू प्रतिमाएं हैं, जिनमें से एक सीहोर में विराजित हैं। अनोखी इसलिए है कि कमल से प्रकट हुई भगवान गणेश की प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई है। राजधानी के निकट बसे सीहोर जिला मुख्यालय से करीब तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित चिंतामन गणेश मंदिर वर्तमान में देशभर में अपनी ख्याति और भक्तों की अटूट आस्था को लेकर पहचाना जाता है।
प्राचीन चिंतामन सिध्द गणेश को लेकर पौराणिक इतिहास है। जानकारों के अनुसार चिंतामन सिद्ध भगवान गणेश की देश में चार स्वंयभू प्रतिमाएं हैं। इनमें से एक रणथंभौर सवाई माधोपुर राजस्थान, दूसरी उज्जैन स्थित अवन्तिका, तीसरी गुजरात में सिद्धपुर और चौथी सीहोर में चिंतामन गणेश मंदिर में विराजित हैं। इस मंदिर का इतिहास करीब दो हजार वर्ष पुराना है। युति है कि सम्राट विक्रमादित्य सीवन नदी से कमल पुष्प के रूप में प्रगट हुए भगवान गणेश को रथ में लेकर जा रहे थे। सुबह होने पर रथ जमीन में धंस गया। रथ में रखा कमल पुष्प गणेश प्रतिमा में परिवर्तित होने लगा। प्रतिमा जमीन में धंसने लगी। बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया। आज भी यह प्रतिमा जमीन में आधी धंसी हुई है।
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दो हजार साल पुराना है मंदिर का इतिहास
मंदिर और मूर्ति की स्थापना के बारे में पूर्वज बताते हैं कि लगभग 2000 वर्ष पूर्व परमार वंश के राजा उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर में स्थापित श्रीगणेश जी की मूर्ति खड़ी हुई है। मूर्ति का आधा हिस्सा जमीन के अंदर धंसा हुआ है। इसलिए भक्तों को आधी मूर्ति के ही दर्शन होते हैं। यह स्वयंभू प्रतिमा है। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 155 में महाराज विक्रमादित्य द्वारा गणेशजी के मंदिर का निर्माण श्रीयंत्र के अनुरूप करवाया गया था। राजा विक्रमादित्य के पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सभा मंडप का निर्माण बाजीराव पेशवा प्रथम ने करवाया था। शालीवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय तथा गौंड राजा नवल शाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग किया। नानाजी पेशवा विठूर आदि के समय मंदिर की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई है। चिंतामन सिद्ध गणेश जी होने से एवं 84 सिद्धों में से अनेक तपस्वियों ने यहां सिद्धि प्राप्त की है।
गणेश जी प्रतिमा के आंखों में जड़े थे हीरे
बताया जाता है कि गणेशजी के मंदिर में विराजित गणेशजी की प्रतिमा की आंखों में हीरे जड़े हुए थे। 150 वर्ष पूर्व तक मंदिर में ताला नहीं लगाया जाता था तब चोरों ने मूर्ति की आंखों में लगे हीरे चोरी कर लिए गए थे तथा गणेशजी की प्रतिमा की आंखों में से 21 दिन तक दूध की धारा बही थी। तब भगवान गणेशजी ने पुजारी को स्वप्र देकर कहा कि में खंडित नहीं हुआ हूं। तुम मेरी आंखों में चांदी के नेत्र लगवा दो। तभी से भगवान गणेश की आंखों में चांदी के नेत्र लगाए गए हैं।
यहां उल्टा स्वस्तिक बनाने से सीधे हो जाते हैं बिगड़े काम
ऐेतिहासिक चिंतामन गणेश मंदिर पर देशभर से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचते हैं। श्रद्धालु भगवान गणेश के सामने अरदास लगाकर मंदिर की दीवार पर उल्टा स्वस्तिक बनाते हैं और मन्नत पूर्ण होने के पश्चात सीधा स्वस्तिक बनाते हैं। ऐसा करने पर बिगड़े काम सीधे हो जाते हैं और सारी चिंताएं खत्म हो जाती हैं। इसलिए यहां के गणेशजी देशभर में चिंतामन गणेशजी के नाम से जाने जाने लगे हैं।
प्रतिवर्ष गणेश चतुर्दशी से लगता है दस दिवसीय भव्य मेला
हर साल गणेश चतुर्दशी से दस दिवसीय मेला लगता है। इस साल 10 दिवसीय गणेश महोत्सव 7 सितंबर से शुरू होगा। 10 दिवसीय यह पावन महोत्सव देश के सभी हिस्सों के भक्त पहुंचते हैं। हर उम्र के लोग इस महोत्सव का इंतजार करते हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित पृथ्वी वल्लभ दुबे ने बताया कि दस दिवसीय महोत्सव में हर दिन भगवान गणेश का विशेष शृंगार और विशेष आरती की जाएगी, साथ ही 10 दिवसीय मेले का भी आयोजन किया जाएगा। पंडित दुबे ने बताया कि गणेश महोत्सव की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। द्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाएगा।
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